मुजफ्फरपुर: बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के अहियापुर थाना क्षेत्र से एक बेहद चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां दो साल पहले स्मैक रखने के आरोप में गिरफ्तार किए गए परशुराम सहनी को कोर्ट ने बरी कर दिया है। कारण? पुलिस द्वारा जब्त की गई “स्मैक” की पुड़िया दरअसल निकली खैनी (तंबाकू)।
यह खुलासा तब हुआ जब एफएसएल (फॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी) गन्नीपुर की जांच रिपोर्ट कोर्ट में पेश की गई। रिपोर्ट ने पुष्टि की कि जब्त पदार्थ नशीला ड्रग नहीं, बल्कि निकोटीन युक्त खैनी था।
क्या था मामला?
घटना 20 जुलाई 2023 की रात की है। पुलिस को बूढ़ी गंडक नदी के किनारे इमली चौक के पास स्मैक की खरीद-बिक्री की सूचना मिली थी। अवर निरीक्षक अमित कुमार के नेतृत्व में की गई छापेमारी के दौरान परशुराम सहनी को 15 पुड़िया के साथ गिरफ्तार किया गया। पुलिस ने दावा किया कि ये पुड़िया स्मैक की हैं, जिनका कुल वजन 6.60 ग्राम था।
इसके बाद एनडीपीएस एक्ट के तहत चार्जशीट दायर कर परशुराम को जेल भेज दिया गया। अभियोजन पक्ष ने केस में 6 गवाह और 13 साक्ष्य पेश किए।
कोर्ट में खुली सच्चाई
परशुराम की ओर से दायर जमानत याचिका पर हाईकोर्ट ने केस की त्वरित सुनवाई और एफएसएल रिपोर्ट जल्द प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
आखिरकार लगभग दो साल बाद, 26 मई 2025 को आई एफएसएल रिपोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब्त पदार्थ स्मैक नहीं, खैनी था। यह रिपोर्ट 29 मई को कोर्ट में पेश हुई, जिसके आधार पर 10 जून 2025 को विशेष कोर्ट के न्यायाधीश नरेंद्रपाल सिंह ने परशुराम को बरी कर दिया।
न्यायाधीश की सख्त टिप्पणी
कोर्ट ने कहा कि एफएसएल रिपोर्ट में जब यह स्पष्ट हो गया कि आरोपी के पास से जब्त पदार्थ नशीला नहीं था, तो अपराध सिद्ध नहीं होता। साथ ही, न्यायाधीश ने पुलिस को भविष्य में ऐसी गलतियों से बचने और जांच में अधिक सतर्कता बरतने की सख्त हिदायत दी।
परशुराम बोले – “मेरा जीवन दो साल बर्बाद हो गया”
जेल से बाहर आने के बाद मीडिया से बातचीत में परशुराम सहनी ने कहा:
“मैं निर्दोष था, फिर भी दो साल जेल में रहा। यह समय मेरे और मेरे परिवार के लिए बहुत कठिन था। पुलिस की गलती ने मेरी जिंदगी का कीमती समय छीन लिया।”
विशेषज्ञों ने क्या कहा?
नारकोटिक्स विशेषज्ञों का मानना है कि स्मैक और खैनी में स्पष्ट रासायनिक अंतर होता है, जिसे बिना फॉरेंसिक जांच के पहचानना मुश्किल हो सकता है। ऐसे मामलों में त्वरित और सटीक जांच आवश्यक है, क्योंकि गलत गिरफ्तारी न केवल व्यक्तिगत स्तर पर नुकसानदायक होती है, बल्कि न्याय व्यवस्था की साख पर भी सवाल खड़े करती है।