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भागलपुर |“सबसे बड़ा रोग, क्या कहेंगे लोग…” — इस सोच से ऊपर उठकर भागलपुर की निकिता दूबे ने वो कर दिखाया जिसे करने से लड़कियाँ अक्सर रोक दी जाती हैं। वुशू मार्शल आर्ट की कियांग शू इवेंट की इस प्रतिभाशाली खिलाड़ी ने समाज के तानों, आलोचनाओं और फब्तियों के बीच अपनी पहचान बनाई, न केवल जिला और राज्य बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतकर राज्य सरकार की नौकरी भी हासिल की।

सात साल की उम्र में शुरू की ट्रेनिंग, तानों से नहीं डरी

निकिता की खेल यात्रा की शुरुआत वर्ष 2009 में हुई, जब उसके स्कूल कार्मेल ने गोल्डन जुबली वर्ष के अवसर पर मार्शल आर्ट को अनिवार्य कर दिया। शुरुआत में परिजनों का समर्थन कम और समाज का विरोध अधिक मिला। कई लोग उसके पिता से सवाल करते कि “बेटी को लड़ाई क्यों सिखा रहे हो?” रास्ते में फब्तियाँ और तिरछी निगाहें उसकी राह में आती रहीं, लेकिन निकिता अडिग रही। उसने हार मानने के बजाय, मार्शल आर्ट को अपने आत्मविश्वास का हथियार बना लिया।

अब डर नहीं, आत्मविश्वास है

निकिता कहती हैं,

“अब कोई फब्ती कसे तो उसे मुंहतोड़ जवाब दूंगी। पहले डर लगता था, अब सम्मान मिलता है।”

मार्शल आर्ट ने उसे न सिर्फ आत्मरक्षा सिखाई बल्कि उसके भीतर आत्मबल और सामाजिक पहचान भी पैदा की। आज वह भागलपुर के एसडीओ कार्यालय में कार्यरत हैं। उनकी पहली पोस्टिंग पूर्णिया में हुई थी।

पिता का साथ और कोच का मार्गदर्शन बना संबल

निकिता के पिता जयप्रकाश दूबे पेशे से एक इलेक्ट्रीशियन हैं, जिन्होंने समाजिक दबावों के आगे झुके बिना बेटी को हर संभव सहयोग दिया। वहीं स्कूल के कोच राजेश कुमार साह से मिली तकनीकी ट्रेनिंग ने निकिता को कुशल खिलाड़ी में तब्दील किया।


निकिता की प्रमुख उपलब्धियाँ:

वर्ष प्रतियोगिता उपलब्धि
2009 9वीं जूनियर वुशु नेशनल, राजनंदगांव (छत्तीसगढ़) रजत पदक
2012 10वीं जूनियर वुशु नेशनल, रांची कांस्य पदक
2013 21वीं सीनियर वुशु नेशनल, कोलकाता (ईडन गार्डन) कांस्य पदक
2014-15 बिहार सरकार से सम्मान उत्कृष्ट खिलाड़ी पुरस्कार
नौकरी खेल कोटा से राज्य सरकार की नौकरी

प्रेरणा बनीं कई लड़कियों के लिए

निकिता आज कई लड़कियों के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं। उन्होंने न केवल अपनी परिस्थितियों को बदला, बल्कि यह साबित किया कि यदि जिद और जुनून हो, तो किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है।