पटना, 11 जून 2025 —
बिहार की नौकरशाही में इन दिनों एक बड़ा फैसला चर्चा का विषय बना हुआ है। नीतीश सरकार ने भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के 2010 बैच के 13 अधिकारियों को सचिव स्तर पर 6 महीने पहले ही अधिसूचित कर दिया है, जबकि उन्हें वेतनमान का लाभ 1 जनवरी 2026 से मिलेगा। इस असामान्य फैसले ने प्रशासनिक गलियारों में कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
क्या थी सरकार की ‘मजबूरी’?
राज्य सरकार ने यह अधिसूचना 31 मई 2025 को जारी की थी, जिसे लेकर अब नौकरशाही में हलचल मच गई है। जानकारों का मानना है कि यह फैसला कुछ अधिकारियों को पटना जैसे महत्वपूर्ण स्थानों पर बनाए रखने की मंशा से लिया गया है। एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “कुछ खास अधिकारियों को राजधानी में रखना सरकार के लिए जरूरी था, इसलिए यह समय से पहले पदोन्नति दी गई।”
किन अधिकारियों को मिला सचिव स्तर पर कार्य का आदेश?
सामान्य प्रशासन विभाग की अधिसूचना के अनुसार, जिन अफसरों को सचिव स्तर पर कार्य करने की अनुमति दी गई है, उनमें शामिल हैं:
- राजीव रोशन, जिलाधिकारी, दरभंगा
- चंद्रशेखर सिंह, जिलाधिकारी, पटना
- दिनेश कुमार राय, जिलाधिकारी, पश्चिम चंपारण (बेतिया)
- अवनीश कुमार सिंह, जिलाधिकारी, मुंगेर
- कौशल किशोर, निदेशक, समेकित बाल विकास, पटना
- कंवल तनुज, विशेष सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग
- रचना पाटिल, विशेष सचिव, सामान्य प्रशासन विभाग
- हिमांशु कुमार राय, विशेष सचिव, योजना एवं विकास विभाग
- नैय्यर इकबाल, विशेष सचिव, खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग
- अनिमेष कुमार पाराशर, मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी, पटना नगर निगम
- राजकुमार, प्रबंध निदेशक, कॉम्फेड, पटना
- मिनेंद्र कुमार, प्रबंध निदेशक, बिहार राज्य शिक्षा वित्त निगम लिमिटेड
- राकेश कुमार, निदेशक, चकबंदी, बिहार
अभी वेतनमान नहीं, लेकिन जिम्मेदारी सचिव की
गौरतलब है कि इन सभी अधिकारियों को सचिव स्तर पर कार्य करने की अनुमति तो मिल गई है, लेकिन वेतनमान का लाभ उन्हें 1 जनवरी 2026 या उसके बाद प्रभार ग्रहण की तिथि से मिलेगा। यानी प्रभावी प्रमोशन का समय अभी नहीं आया है, पर वे सचिव स्तर की जिम्मेदारियां निभा सकेंगे।
नौकरशाही में सियासी रणनीति की गूंज
राज्य प्रशासन में यह फैसला आम पदोन्नति से हटकर देखा जा रहा है। कई अफसरों और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह निर्णय सियासी रणनीति से प्रेरित हो सकता है। खासकर पटना और अन्य महत्वपूर्ण जिलों में सरकार के विश्वसनीय अधिकारियों को बनाए रखने के लिए यह कदम उठाया गया।