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भागलपुर, 28 मई 2025:बिहार सरकार द्वारा राज्य के 715 अनुदानित माध्यमिक विद्यालयों पर संबद्धता विनियमावली 2011 लागू किए जाने के फैसले के खिलाफ प्रदेशभर में शिक्षाकर्मियों का विरोध तेज हो गया है। मंगलवार को भागलपुर समेत सभी जिला मुख्यालयों पर शिक्षकों ने जोरदार धरना-प्रदर्शन और घेराव किया। उन्होंने इस निर्णय को न केवल विधिक दृष्टि से गलत, बल्कि शिक्षा व्यवस्था के आत्मसम्मान के विरुद्ध भी बताया।

क्या है शिक्षकों की आपत्ति?

प्रदर्शन कर रहे शिक्षकों का कहना है कि जिन 715 विद्यालयों पर यह विनियमावली थोपने की कोशिश की जा रही है, वे 1970 से 2009 के बीच आम जनता और स्थानीय सहयोग से स्थापित किए गए थे। इन स्कूलों को बिहार अराजकीय माध्यमिक विद्यालय अधिनियम 1981 की धारा 19 के तहत राज्य सरकार से विधिवत मान्यता प्राप्त है।

शिक्षकों का कहना है कि:

“विनियमावली 2011 सिर्फ परीक्षा संचालन के लिए बनी थी, इसे मान्यता प्राप्त स्कूलों पर लागू करना कानूनन गलत है।”

वे यह भी कहते हैं कि 2008 तक इन्हीं मान्यताओं के आधार पर अनुदान, वेतन भुगतान और सरकारी योजनाओं के लाभ जैसे अधिकार स्कूलों और विद्यार्थियों को मिलते रहे हैं।

विद्यालयों की स्वायत्तता पर खतरा

प्रदर्शनकारियों का तर्क है कि विनियमावली 2011 में स्कूलों को कोई आर्थिक या प्रशासनिक राहत नहीं दी गई है। इसके विपरीत, इस नियम के लागू होने से पूर्व मान्यता प्राप्त स्कूलों की स्वायत्तता और गरिमा को सीधा नुकसान होगा।

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि:

“1952 की बिहार विद्यालय परीक्षा समिति नियमावली भी स्पष्ट रूप से कहती है कि राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त विद्यालयों पर अतिरिक्त संबद्धता की शर्तें लागू नहीं की जा सकतीं।”

सरकार को चेतावनी

शिक्षकों ने स्पष्ट किया कि अगर सरकार ने इस निर्णय को तत्काल वापस नहीं लिया, तो वे आंदोलन को राज्यव्यापी रूप देंगे। इस विरोध ने एक बार फिर राज्य में शिक्षा व्यवस्था के भीतर चल रहे असंतोष को सामने लाकर खड़ा कर दिया है।

क्यों है यह मामला अहम?

  • ये स्कूल राज्य के ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में शिक्षा का मुख्य स्रोत हैं।
  • लाखों छात्र-छात्राएं इन स्कूलों से पढ़ाई कर रहे हैं और सरकारी योजनाओं का लाभ भी पा रहे हैं।
  • यदि यह नियम लागू हुआ तो इन स्कूलों की मान्यता और संचालन पर संकट आ सकता है।

अब क्या?

यह मामला अब राज्य सरकार की नीति-निर्माण और संवाद क्षमता की परीक्षा बन गया है। शिक्षकों की मांग है कि सरकार संविधानिक प्रावधानों और पूर्व स्वीकृत कानूनों का पालन करे और शिक्षा को राजनीति से अलग रखते हुए समाधान निकाले।