
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को देशभर की निचली अदालतों में जजों की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर अहम फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने आदेश दिया है कि अब सिविल जज सीनियर डिवीजन के प्रमोशन में विभागीय परीक्षा के जरिए मिलने वाले कोटे को 10% से बढ़ाकर 25% किया जाएगा। इसके लिए सभी उच्च न्यायालय और राज्य सरकारें अपने-अपने सेवा नियमों में आवश्यक संशोधन करेंगी।
3 साल की प्रैक्टिस अनिवार्य, लॉ क्लर्क का अनुभव भी मान्य
सुप्रीम कोर्ट ने सिविल जज (जूनियर डिवीजन) भर्ती परीक्षा के लिए 3 साल की न्यूनतम वकालत का अनुभव अनिवार्य कर दिया है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यह अनुभव किसी ऐसे वकील से प्रमाणित होना चाहिए जिसे बार में कम से कम 10 साल का अनुभव हो।
इसके साथ ही लॉ क्लर्क के रूप में किए गए कार्य का समय भी इस अनुभव में जोड़ा जाएगा। नियुक्ति के बाद सभी चयनित उम्मीदवारों को अदालत में कार्यभार संभालने से पहले एक साल का प्रशिक्षण लेना अनिवार्य होगा।
हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि जिन उच्च न्यायालयों ने पहले ही भर्ती प्रक्रिया शुरू कर दी है, उनके लिए यह न्यूनतम अनुभव की शर्त लागू नहीं होगी।
अब रुकी हुई भर्तियों पर आगे बढ़ेगी प्रक्रिया
कोर्ट के इस निर्णय के बाद अब वे सभी भर्ती प्रक्रियाएं जो मामले के लंबित होने के कारण रुकी हुई थीं, उन्हें संशोधित नियमों के अनुसार आगे बढ़ाया जाएगा।
हाई कोर्ट जजों की पेंशन पर भी सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
इससे एक दिन पहले, सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के रिटायर्ड जजों की पेंशन को लेकर ‘वन रैंक, वन पेंशन’ का ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। सीजेआई जस्टिस बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि, “चाहे किसी जज की नियुक्ति जिला न्यायपालिका से हुई हो या सीधे वकालत से, उन्हें हर साल कम से कम 13.65 लाख रुपये पेंशन दी जानी चाहिए।”