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22 अप्रैल को 26 टूरिस्टों की हत्या के बाद डर का माहौल, हजारों कश्मीरियों की रोज़ी-रोटी पर संकट

श्रीनगर, जम्मू-कश्मीर:22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले को एक महीना बीत चुका है, लेकिन उसका असर आज भी कश्मीर की फिजा में देखा जा सकता है। इस हमले में 26 निहत्थे पर्यटकों की जान गई थी, और तब से श्रीनगर सहित पूरे कश्मीर में पर्यटन पूरी तरह से ठप हो गया है।

डल झील और लाल चौक में पसरा सन्नाटा
जहाँ गर्मी के इस मौसम में डल झील के शिकारे टूरिस्टों से भरे रहते थे, आज वे खाली खड़े हैं। शिकारा चालक बिलाल कहते हैं, “24 दिन हो गए, किसी ने शिकारा तक नहीं पूछा।” श्रीनगर के लाल चौक पर भी वही हाल है — न सेल्फी लेने वाले, न बाजार की रौनक।
शौकत मीर, जो एक टैक्सी कंपनी चलाते हैं, कहते हैं कि “इस हमले ने सिर्फ इंसानों को नहीं मारा, बल्कि हमारी रोजी-रोटी भी छीन ली।”

दुकानें और होटल हुए बंद
पर्यटक न होने की वजह से हजारों दुकानें, होटल और रेस्टोरेंट या तो बंद हैं या घाटे में चल रहे हैं। केसर और ड्राई फ्रूट बेचने वाले अली बताते हैं, “पहले इतना बिजनेस होता था कि 15 लोग रखने पड़ते थे, अब दुकान खाली पड़ी है।”
कश्मीरी काहवा बेचने वाले सलामत कहते हैं कि ऐसा सन्नाटा उन्होंने कोविड काल में ही देखा था।

सुरक्षा कड़ी, लेकिन डर कायम
हालांकि श्रीनगर में पुलिस और सेना की भारी तैनाती है, और एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन, बस अड्डे समेत संवेदनशील इलाकों में सख्त सुरक्षा जांच की जा रही है, फिर भी टूरिस्ट लौटने से कतरा रहे हैं।

भारत का जवाब और पाकिस्तान की हार
इस आतंकी हमले के बाद भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान और पीओके में मौजूद आतंकियों के ठिकानों को तबाह कर दिया। सूत्रों के अनुसार, इस कार्रवाई में 100 से ज्यादा आतंकी मारे गए। जवाब में पाकिस्तान ने ड्रोन से हमले किए, लेकिन भारतीय सेना ने उनके कई ड्रोन गिराकर कड़ी शिकस्त दी। अंततः पाकिस्तान को संघर्षविराम का प्रस्ताव देना पड़ा।


पहलगाम की यह घटना सिर्फ एक आतंकी हमला नहीं थी, बल्कि कश्मीर की अर्थव्यवस्था और पर्यटन पर सीधा प्रहार थी। अब भी कश्मीर के लोग सहमे हुए हैं और आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। जरूरत है कि सरकार और देशवासी मिलकर इस जख्म को भरने की कोशिश करें, ताकि कश्मीर फिर से मुस्कुरा सके।