
गया, 14 मई: मणिपुर की पारंपरिक मार्शल आर्ट थांग-टा, जो खेलो इंडिया यूथ गेम्स 2025 के पांच स्वदेशी खेलों में शामिल है, का रोमांचक समापन बुधवार को गया के बिहार इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन एंड रूरल डेवलपमेंट (BIPARD) में हुआ। इस तीन दिवसीय आयोजन में मणिपुर ने सर्वाधिक तीन स्वर्ण पदकों के साथ दबदबा बनाए रखा, वहीं मेजबान बिहार ने पहली बार दो स्वर्ण पदक जीतकर ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज की।
बिहार की प्रिय प्रेरणा और माहिका कुमारी ने स्वर्ण पदक जीतकर राज्य को गौरवान्वित किया। आठ स्वर्ण पदकों में मणिपुर को तीन, बिहार और असम को दो-दो, तथा मध्य प्रदेश को एक स्वर्ण मिला।
थांग-टा की परंपरा और पुनरुत्थान:
इस स्वदेशी युद्धकला को ब्रिटिश शासनकाल में 1891 में प्रतिबंधित कर दिया गया था। हुइद्रोम प्रेमकुमार, जिन्होंने इस कला को पुनर्जीवित करने में अहम भूमिका निभाई, बताते हैं कि 1930 में एक स्थानीय राजा ने इसे फिर से शुरू किया और बाद में उनके गुरु राजकुमार सनाहान ने इसे नई दिशा दी। प्रेमकुमार ने इसे भारत सहित दक्षिण कोरिया और ईरान तक पहुंचाया।
कोच टीकेन सिंह की भूमिका:
बिहार के कोच सारंगथेम टीकेन सिंह ने बताया, “राजगीर में दो महीने के कैंप के दौरान बच्चों ने कड़ी मेहनत की और तेज़ी से इस पारंपरिक खेल की तकनीकें सीखीं।”
प्रतियोगिता में कुल 128 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया:
25 राज्यों के खिलाड़ियों ने चार भारवर्गों में दो विधाओं फुनबा अमा (तलवार और ढाल) और फुनबा अनीशुबा (बिना ढाल, किकिंग शामिल) में भाग लिया।
प्रमुख विजेता इस प्रकार रहे:
फुनबा अनीशुबा (बालक, -56kg):
स्वर्ण – थोकचोम श्रीनिवास सिंह (मणिपुर)
फुनबा अनीशुबा (बालिका, -56kg):
स्वर्ण – माहिका कुमारी (बिहार)
फुनबा अमा (बालिका, -52kg):
स्वर्ण – प्रिय प्रेरणा (बिहार)
(बाकी विजेताओं की सूची पूरी रिपोर्ट में ऊपर देखें)
खेलो इंडिया में स्वदेशी खेलों का महत्व:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार मल्लखंब, गतका, कलरिपयट्टु, योगासन और थांग-टा जैसे स्वदेशी खेलों को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है। 2036 ओलंपिक की संभावित मेजबानी के लिए भारत प्रयासरत है, जिसमें इन खेलों को शामिल कराने का भी लक्ष्य है।
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