प्रकाशित: 16 जून 2025
पटना | राजनीतिक संवाददाता
श्रेणी: राजनीति | दलित अधिकार | विवाद
संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर के कथित अपमान के मामले में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद यादव की मुश्किलें बढ़ गई हैं। बिहार राज्य अनुसूचित जाति आयोग (BSSCC) ने इस मामले पर संज्ञान लेते हुए लालू यादव को नोटिस जारी किया है। आयोग ने 15 दिनों के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया है और पूछा है कि क्यों न उनके खिलाफ अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाए।
नोटिस में क्या कहा गया है?
बिहार राज्य अनुसूचित जाति आयोग द्वारा जारी नोटिस में लिखा गया है कि लालू यादव ने अपने जन्मदिन के अवसर पर संविधान निर्माता डॉ. अंबेडकर की तस्वीर का अपमान किया, जो सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से वायरल हो रहा है। आयोग ने लिखा:
“आपने एक सार्वजनिक अवसर पर बाबासाहेब की तस्वीर के साथ जो व्यवहार किया, उससे न केवल एक समुदाय का नहीं, बल्कि पूरे देश के सम्मान को ठेस पहुंची है।”
आयोग ने उनसे स्पष्ट स्पष्टीकरण मांगा है कि आखिर ऐसा व्यवहार क्यों किया गया और क्यों न उनके खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया जाए।
क्या है पूरा मामला?
मामला 11 जून 2025 का है, जब लालू यादव ने अपना 78वां जन्मदिन मनाया। हालांकि विवाद 14 जून को तब गहराया जब सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें लालू यादव कुर्सी पर बैठे हैं और उनके सामने एक समर्थक डॉ. अंबेडकर की तस्वीर लेकर आता है। वीडियो में ऐसा प्रतीत हो रहा है कि बाबासाहेब की तस्वीर लालू के पैरों के पास है।
यही दृश्य लोगों की भावनाओं को आहत कर गया और विरोध शुरू हो गया। वीडियो को लेकर कई राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने नाराज़गी जताई और इसे “दलित समुदाय का अपमान” करार दिया।
राजनीतिक पारा चढ़ा, NDA ने साधा निशाना
इस विवाद के बाद बिहार की सियासत गर्मा गई है। NDA के नेताओं ने वीडियो को लगातार सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए लालू यादव पर जानबूझकर अपमान करने का आरोप लगाया है। सत्ता पक्ष के नेताओं का कहना है कि यह दलित समाज और संविधान निर्माता दोनों का अपमान है, जो अक्षम्य है।
एनडीए प्रवक्ताओं ने मांग की है कि लालू यादव माफी मांगें और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए।
पत्र में दिखीं कई अशुद्धियां भी
हालांकि, आयोग द्वारा जारी नोटिस की भाषा और उसमें पाई गई प्रशासनिक अशुद्धियों को लेकर भी चर्चा हो रही है। कुछ आलोचकों का कहना है कि इतना संवेदनशील नोटिस अधिक विधिक और भाषा की दृष्टि से स्पष्ट होना चाहिए था।