स्लम बस्तियों में शिक्षा की अलख जगाने वाले शैलेंद्र अब देशभर में समाज सेवा की नई मिसाल पेश कर रहे हैं
गया।बिहार के गया जिले के छोटे से गांव खुखड़ी से निकलकर समाज सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम करने वाले शैलेंद्र कुमार आज देशभर में मिसाल बन चुके हैं। कभी स्लम बस्तियों की तंग गलियों में घूम-घूम कर बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करने वाला यह युवक अब राष्ट्रपति अवार्ड हासिल कर चुका है।
22 साल की उम्र में राष्ट्रपति सम्मान
शिक्षा, पर्यावरण संरक्षण, नशा मुक्ति और सामाजिक जागरूकता जैसे क्षेत्रों में अद्भुत योगदान के लिए शैलेंद्र को 24 सितंबर 2022 को भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों एनएसएस का सर्वोच्च पुरस्कार मिला। यह सम्मान देशभर के 40 लाख एनएसएस स्वयंसेवकों में से केवल 30 को दिया गया, जिसमें बिहार के शैलेंद्र भी शामिल थे।
एनएसएस से जुड़कर बदली दिशा
शैलेंद्र ने वर्ष 2016 में जगजीवन कॉलेज, गया में पढ़ाई के दौरान एनएसएस (राष्ट्रीय सेवा योजना) से जुड़कर समाज सेवा का सफर शुरू किया। फिर स्लम बस्तियों, प्रौढ़ शिक्षा केंद्रों और गांव-गांव घूमकर शिक्षा, स्वास्थ्य, पौधारोपण, नशा मुक्ति, एड्स जागरूकता, रक्तदान जैसे सामाजिक काम किए।
गांव में शिक्षा क्रांति की शुरुआत
शैलेंद्र के प्रयास से गया के खुखड़ी गांव में कभी जहां गिनती के बच्चे स्कूल जाते थे, आज 100 प्रतिशत बच्चे शिक्षा से जुड़े हैं। उनका कहना है कि पहले गांव में बच्चे खिचड़ी खाने स्कूल जाते थे, अब सरकारी नौकरियों तक पहुंच रहे हैं।
15 राज्यों में सामाजिक सेवा
शैलेंद्र अब तक देश के 15 राज्यों में सामाजिक कैंप कर चुके हैं। हरियाणा के नूंह जिले में जब 30% टीकाकरण दर थी, शैलेंद्र की टीम ने उसे 60% तक पहुंचा दिया। इसी तरह देश के कई हिस्सों में शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण को लेकर उल्लेखनीय काम किया।
सपना है देश का बड़ा समाज सेवक बनना
मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाले शैलेंद्र के पिता एक छोटे दुकानदार हैं। शैलेंद्र का सपना है कि वे राष्ट्र को समर्पित एक बड़े समाजसेवी बनें। युवाओं से वे अपील करते हैं कि “राष्ट्र निर्माण में हर युवा को आगे आना चाहिए। पढ़ाई के साथ समाज सेवा भी करनी चाहिए।”