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पटना, 13 जून।बिहार की धरती हमेशा से कला और शिल्प के लिए जानी जाती रही है। आज भी यहां ऐसे शिल्पकार मौजूद हैं, जो पारंपरिक कलाओं को नई पीढ़ी तक पहुंचा रहे हैं। इन्हीं में से एक नाम है कैमूर जिले के फिरंगी लाल गुप्ता का, जिनकी कलाकारी देश ही नहीं, विदेशों तक अपनी छाप छोड़ चुकी है।

अंडरकट तकनीक के माहिर फिरंगी लाल गुप्ता मुलायम पत्थरों को काट-तराश कर उसमें अद्भुत कारीगरी करते हैं। उनकी सबसे खास कला है — पत्थर के हाथी के भीतर और भी हाथी को उकेर देना। फिरंगी लाल वर्तमान में पटना स्थित उपेन्द्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान में बच्चों को मूर्तिकला की बारीकियां सिखा रहे हैं।

अपनी कला यात्रा के बारे में उन्होंने बताया कि सबसे पहले मुलायम पत्थर को आरी से काटा जाता है, फिर कटर से उसे तराशकर विभिन्न पशु-पक्षियों का आकार दिया जाता है। उनकी बनाई कछुआ, बत्तख, मेंढ़क और हाथी की मूर्तियाँ काफी लोकप्रिय हैं।

फिरंगी लाल को कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंच मिले।
बिहार सरकार, भारत सरकार और फिक्की के सहयोग से उन्हें 2008 में चीन और 2017 में मॉरीशस में अपनी कला प्रदर्शित करने का मौका मिला। उनकी तीन फीट ऊँची संगमरमर की हाथी की मूर्ति कैमूर समाहरणालय परिसर में स्थापित है, जिसे उन्होंने करीब 10 क्विंटल पत्थर को तराशकर बनाया है।

राज्य सरकार ने 2009-10 में उन्हें राज्य पुरस्कार से नवाजा।
2012 में उपेन्द्र महारथी संस्थान में उनके शिल्प प्रदर्शन ने कला प्रेमियों का ध्यान खूब खींचा। आज वे उसी संस्थान में उद्योग विभाग के अंतर्गत अंशकालिक प्रशिक्षक के रूप में काम कर रहे हैं और युवा प्रतिभाओं को पारंपरिक मूर्तिकला की शिक्षा दे रहे हैं।

फिरंगी लाल गुप्ता का जीवन यह साबित करता है कि मेहनत, लगन और कला के प्रति जुनून हो, तो कोई भी अपनी पहचान देश-विदेश तक बना सकता है।


 

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