नई दिल्ली, 1 जून 2025 :दिल्ली उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद यादव को बड़ा झटका देते हुए उनके खिलाफ सीबीआई द्वारा दर्ज प्राथमिकी रद्द करने की याचिका को खारिज कर दिया है। यह मामला भारतीय रेलवे में ‘नौकरी के बदले जमीन’ देने से संबंधित है, जिसमें सीबीआई ने भ्रष्टाचार के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की थी।
हाईकोर्ट की टिप्पणी
न्यायमूर्ति रविन्द्र डुडेजा की एकल पीठ ने कहा कि इस मामले में निचली अदालत में आरोप तय करने पर बहस शुरू होने वाली है, और ऐसे में जांच अथवा कार्यवाही को रोके जाने का कोई आधार नहीं बनता। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि बचाव पक्ष को निचली अदालत में अपनी दलीलें रखने की पूरी स्वतंत्रता है।
कपिल सिब्बल ने क्या कहा?
लालू यादव की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अदालत में दलील दी कि सीबीआई ने प्राथमिकी दर्ज करने और जांच को आगे बढ़ाने से पहले प्राधिकृत अधिकारी से अनिवार्य पूर्व मंजूरी नहीं ली, जबकि अन्य सह-अभियुक्तों के खिलाफ मंजूरी प्राप्त की गई थी। उन्होंने इसे सीबीआई की प्रक्रिया में त्रुटि करार देते हुए प्राथमिकी रद्द करने की मांग की।
सीबीआई का पक्ष
सीबीआई की ओर से जवाब में कहा गया कि इस मामले में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17-A लागू नहीं होती और इसीलिए पूर्व मंजूरी की आवश्यकता नहीं है। एजेंसी ने अदालत से आग्रह किया कि मामला पूरी तरह विचारणीय है और कानूनी रूप से जांच की प्रक्रिया में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए।
निचली अदालत में 2 जून से बहस
इस केस में 2 जून से निचली अदालत में आरोप तय करने पर बहस शुरू होनी है। अब जब हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी है, तो यह बहस नियत कार्यक्रम के अनुसार आगे बढ़ेगी।
पृष्ठभूमि
‘जमीन के बदले नौकरी‘ घोटाले का आरोप है कि लालू यादव के रेल मंत्री रहते हुए कई उम्मीदवारों को रेलवे में नौकरी देने के बदले उनके परिवार या निकट संबंधियों के नाम पर जमीन ट्रांसफर कराई गई थी। इस मामले में लालू यादव, उनकी पत्नी राबड़ी देवी और बेटी मीसा भारती सहित कई लोगों के खिलाफ सीबीआई ने आरोप लगाए हैं।
दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब लालू प्रसाद यादव को निचली अदालत में ही कानूनी लड़ाई जारी रखनी होगी। सीबीआई की जांच को अदालत की वैधानिक स्वीकृति मिलने के बाद मामले की सुनवाई और तेज़ होने की संभावना है।