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सरकार नहीं बनी मददगार तो ग्रामीणों ने खुद बनाई 3 किमी लंबी सड़क और नाला, जानिए कैसे

ByLuv Kush

जून 8, 2025
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बांका | न्यूज़ डेस्क — “जहां चाह वहां राह”—इस कहावत को बिहार के बांका जिला अंतर्गत अमरपुर प्रखंड के लोगाई गांव के दलित टोला के ग्रामीणों ने हकीकत में बदल दिया। सालों तक सरकारी दरवाजों पर दस्तक देने के बावजूद जब कोई सुनवाई नहीं हुई, तो इन ग्रामीणों ने चंदा इकट्ठा कर खुद ही सड़क और नाला निर्माण कर दिया।

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3 किलोमीटर लंबी सड़क बनी लोगों के सहयोग से

लोगाई महादलित टोला से डिमारा तक की दूरी लगभग 3 किलोमीटर है, लेकिन इस पूरे रास्ते में सड़क नहीं थी। बरसात के दिनों में यह रास्ता कीचड़ और जलजमाव में तब्दील हो जाता था। लोगों को पगडंडियों से होकर गुजरना पड़ता था, जिससे करीब 10,000 की आबादी प्रभावित हो रही थी।

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“आजादी के 78 साल बाद भी सड़क नहीं” — ग्रामीणों का दर्द

राजीव कुमार, जो इस पहल की अगुवाई कर रहे हैं, ने कहा:

“आजादी के 78 साल बाद भी हम लोग सड़क जैसी बुनियादी सुविधा से वंचित हैं।”

उनके अनुसार, जब जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों से मदद नहीं मिली, तो ग्रामीणों ने खुद पहल करने का निर्णय लिया।

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बीमारों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत थी यह रास्ता

ग्रामीणों ने बताया कि एम्बुलेंस तक नहीं पहुंच पाती थी। कई बार तो मरीजों को अस्पताल ले जाने में इतनी देर हो जाती थी कि जान पर बन आती थी। बरसात में हालात और भी भयावह हो जाते थे।

बमबम कुमार ने बताया:

“हम लोगों ने एक दिन फैसला लिया कि अब और इंतजार नहीं। आपस में चंदा इकट्ठा कर सड़क और नाले का निर्माण खुद ही शुरू किया।”

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सामूहिक प्रयास से बदली तस्वीर

सड़क निर्माण में राजीव कुमार, बमबम कुमार, अनूप कुमार, मनीष कुमार, हरि दास समेत दर्जनों ग्रामीण जुटे रहे। सभी ने श्रमदान और धन एकत्र कर यह कार्य किया।

इस मुहिम से यह स्पष्ट संदेश गया है कि जब सरकार और सिस्टम विफल हो जाएं, तो जनशक्ति के सहारे बदलाव संभव है।

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स्थानीय प्रशासन पर सवाल

इस प्रयास ने स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता को उजागर कर दिया है। सालों तक लगातार गुहार के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। अब जब ग्रामीणों ने खुद सड़क बना दी, तो सवाल उठता है कि सरकार और सिस्टम की भूमिका क्या रही?

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यह है असली आत्मनिर्भर भारत

बिना किसी सरकारी मदद के सिर्फ आपसी सहयोग से सड़क और नाला निर्माण कर लोगाई गांव के ग्रामीणों ने यह दिखा दिया कि आत्मनिर्भरता सिर्फ नारा नहीं, हकीकत भी बन सकती है।

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