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बिहार के भागलपुर जिले में स्थित खुटाहा (गोराडीह प्रखंड) और कमरगंज (सुल्तानगंज प्रखंड) गांव इन दिनों देशभर में चर्चा का विषय बने हुए हैं। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद इन गांवों की देशभक्ति और बलिदान की कहानियां फिर से सुर्खियों में आ गई हैं। ये दो गांव अब तक भारत को 1000 से अधिक सैनिक दे चुके हैं, जो थलसेना, वायुसेना, नौसेना और अर्द्धसैनिक बलों में सेवा दे चुके हैं या वर्तमान में दे रहे हैं।

“फौजियों का गांव” और “वीरों की धरती”

  • खुटाहा को लोग “वीरों की धरती” कहते हैं, जहां की मिट्टी में देशभक्ति और बलिदान रचा-बसा है।
  • कमरगंज को “सैनिक ग्राम” कहा जाता है, क्योंकि यहां हर घर से एक-एक युवा सेना में शामिल है या तैयारी कर रहा है।

तीन पीढ़ियां देश सेवा में, चौथी तैयारी में

कमरगंज गांव की खासियत यह है कि यहां दो पीढ़ियां पहले ही सेना में सेवा दे चुकी हैं, तीसरी पीढ़ी वर्तमान में तैनात है और चौथी पीढ़ी सेना में शामिल होने की तैयारी कर रही है। गंगा नदी के किनारे और गांव के हाइवे पर हर सुबह और शाम युवाओं की टोलियां दौड़ लगाते, कसरत करते और पढ़ाई करते देखी जा सकती हैं।

1965 से आज तक बलिदान की मिसाल

इन गांवों के कई जवान 1965 और 1971 के युद्धों में शामिल हुए थे। समय-समय पर इन गांवों ने अपने सपूतों को युद्ध में खोया है, लेकिन देशभक्ति का जज़्बा कभी कम नहीं हुआ। छुट्टी पर घर लौटने वाले सैनिक गांव के युवाओं को ट्रेनिंग देते हैं और देश सेवा के लिए प्रेरित करते हैं।

6000 की आबादी, 100 से अधिक सैनिक तैनात

करीब 6000 की आबादी वाले इन गांवों में 100 से अधिक युवा वर्तमान में भारतीय सेना, वायुसेना, नौसेना, आईटीबीपी, बीएसएफ, सीआरपीएफ जैसे बलों में सेवा दे रहे हैं। यही नहीं, गांव में युवाओं की सुबह फिजिकल ट्रेनिंग से शुरू होती है और रात पढ़ाई के साथ खत्म होती है।

ऑपरेशन सिंदूर के बाद बढ़ा गौरव

हाल ही में हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में भी इन गांवों के कई जवान शामिल थे। जैसे ही भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम की खबर आई, गांव वालों ने ईश्वर का धन्यवाद किया, लेकिन साथ ही अपने बेटों की बहादुरी पर गर्व भी जताया।

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