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आरा। भोजपुर जिले के आरा शहर से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है जहाँ दो युवतियों ने एक-दूसरे से प्रेम संबंध में रहते हुए शादी कर ली। यह मामला अब कानूनी और सामाजिक दोनों दृष्टिकोण से चर्चा का विषय बन गया है।

नगर थाना क्षेत्र के रघु टोला मोहल्ले की रहने वाली ये दोनों लड़कियाँ पिछले तीन वर्षों से एक-दूसरे के प्रेम में थीं। परिजनों को इसकी भनक तक नहीं थी। 15 जून की रात दोनों अपने-अपने घर से अचानक गायब हो गईं। परिजनों ने जब तलाश शुरू की तो पता चला कि दोनों लड़कियाँ गुजरात के राजकोट पहुंच गई थीं, जहाँ उन्होंने शादी की और फिर दिल्ली के नागलोई स्थित लक्ष्मी पार्क में पति-पत्नी की तरह रहने लगीं।

दिल्ली से लाकर सौंपा पुलिस को

परिजनों ने दोनों को दिल्ली से ढूंढकर आरा लाया और नगर थाना पुलिस को सौंप दिया। इसके बाद पुलिस ने उन्हें बाल संरक्षण इकाई के पास भेजा, जहाँ उनकी काउंसलिंग कराई गई। काउंसलिंग के दौरान दोनों ने एक-दूसरे के प्रति अपने प्रेम को स्वीकारते हुए साथ रहने की जिद पर अड़ी रहीं।

परिजनों में असहमति, आरोप-प्रत्यारोप भी शुरू

एक लड़की की मां ने आरोप लगाया कि उसकी बेटी को बहला-फुसलाकर भगाया गया है। उन्होंने यह भी दावा किया कि दूसरी लड़की पहले भी इस तरह की हरकत कर चुकी है और अन्य लड़कियों को भगाकर शादी करने का प्रयास कर चुकी है।

वहीं दूसरी लड़की की बहन ने बताया कि उसकी बहन 15 जून की रात 12 बजे घर से निकली थी। बाद में दिल्ली में मौजूद एक रिश्तेदार के माध्यम से दोनों का पता चला। परिजनों ने समझाने की कोशिश की, लेकिन दोनों अलग होने को तैयार नहीं थीं।

कानूनी पहलू: एक नाबालिग, इसलिए मामला गंभीर

चूंकि इस प्रकरण में एक लड़की अभी नाबालिग है, ऐसे में भारतीय कानून के तहत यह विवाह अमान्य और अवैध माना जाएगा। बाल संरक्षण इकाई और पुलिस की कार्रवाई भी इसी कानूनी आधार पर हुई है। अंततः परिजनों की सहमति से दोनों को उनके-अपने घर भेज दिया गया, लेकिन परिवारों के बीच तनाव अब भी बना हुआ है।

स्थानीय समाज में चर्चा का विषय

घटना सामने आने के बाद से रघु टोला सहित आसपास के क्षेत्रों में यह मामला चर्चा का विषय बना हुआ है। एक ओर समाज के एक वर्ग में LGBTQ+ अधिकारों को लेकर सहानुभूति देखी जा रही है, वहीं दूसरी ओर कानूनी जटिलताओं और सामाजिक अस्वीकृति को लेकर विरोधाभासी विचार भी सामने आ रहे हैं।

यह मामला सिर्फ दो युवतियों के प्रेम संबंध का नहीं, बल्कि आधुनिक समाज और पारंपरिक सोच के बीच टकराव का प्रतीक बनकर उभरा है। जहां एक ओर व्यक्ति की स्वतंत्रता और भावनात्मक अधिकार की बात हो रही है, वहीं दूसरी ओर क़ानून और सामाजिक व्यवस्था की सीमाएँ भी सामने हैं।