
भागलपुर, बिहार | 28 मई 2025 — मायागंज हॉस्पिटल के पीछे स्थित नर्स क्वार्टर में 22 जुलाई 2024 को हुई लाखों की चोरी का मामला अब तक अनसुलझा है। पीड़ित मीनू कुमारी, जो मायागंज अस्पताल में इंटर्न हॉस्टल वार्डन के रूप में कार्यरत हैं, आज भी न्याय की आस में थानों और अधिकारियों के चक्कर काट रही हैं।
20 लाख के जेवरात, सबूतों की अनदेखी
घटना के दिन मीनू कुमारी का परिवार घर पर नहीं था। वापस लौटने पर पता चला कि घर से करीब 20 लाख रुपये मूल्य के जेवरात और कीमती सामान गायब हैं। ड्राइवर अखिलेश उर्फ मुन्ना पासवान द्वारा 24 जुलाई को चोरी की सूचना दी गई, लेकिन जब मीनू कुमारी 25 जुलाई को थाने पहुँचीं, तो उन्हें रात 12 बजे तक थाने में बिना प्राथमिकी दर्ज किए बैठाए रखा गया।
पीड़िता का आरोप है कि ड्राइवर पर संदेह जताने के बावजूद, पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने से पहले नाम हटाने की शर्त रखी।
थाने से महज 100 मीटर की दूरी पर हुई चोरी, फिर भी ढीली जांच
26 जुलाई को दिए गए आवेदन पर 29 जुलाई तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। जब पीड़िता ने एसएसपी को आवेदन सौंपा, तब जाकर एक टीम मौके पर भेजी गई, लेकिन जांच खानापूरी से आगे नहीं बढ़ सकी। घर में पाए गए खून के धब्बों को पेंट बता कर मिटा दिया गया और न कोई फॉरेंसिक जांच की गई, न ही किसी तरह का सबूत संकलित किया गया।
छह महीने बाद गिरफ्तारी, लेकिन न चोरी का सामान बरामद हुआ न डर खत्म हुआ
लगभग छह महीने बाद एक आरोपी की गिरफ्तारी हुई, लेकिन चोरी गया सामान अब तक नहीं मिला। आरोपी को जमानत मिल चुकी है, और मीनू कुमारी व उनका परिवार अब भी मानसिक प्रताड़ना और डर के माहौल में जी रहा है।
पीड़िता का यह भी आरोप है कि पुलिस और अपराधियों की मिलीभगत की आशंका को जांच में नज़रअंदाज़ किया गया।
प्रशासन कब जागेगा?
यह मामला न केवल चोरी की वारदात, बल्कि पुलिस व्यवस्था की निष्क्रियता और संवेदनहीनता को भी उजागर करता है। सवाल यह है कि क्या अब जब मामला सार्वजनिक हो चुका है, तब प्रशासन सक्रियता दिखाएगा? या फिर मीनू कुमारी भी बिहार की न्याय व्यवस्था के एक और शिकार के रूप में याद रह जाएंगी?