छोटे कर्मचारी से लेकर बड़े अधिकारी तक, सुशासन की सरकार में शिक्षा विभाग बन चुका है भ्रष्टाचार का अड्डा
पटना/अरवल/बेतिया | विशेष रिपोर्ट
बिहार में भ्रष्टाचार अब छोटे कर्मचारियों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसके तार बड़े अधिकारियों से भी गहराई से जुड़े हैं। शिक्षा विभाग में रिश्वतखोरी के ताजा मामले ने एक बार फिर राज्य के सुशासन पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
अदना कर्मचारी तक कर रहा मोटी वसूली, तो अधिकारी कितना बटोरते होंगे?
5 मई 2025 को निगरानी अन्वेषण ब्यूरो (Vigilance Investigation Bureau) की मुख्यालय टीम ने अरवल जिला शिक्षा पदाधिकारी (DEO) कार्यालय में तैनात प्रधान लिपिक मनोज कुमार और कंप्यूटर ऑपरेटर संतोष कुमार शर्मा को रंगे हाथ 50,000 रुपये रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया। ये रिश्वत सेवानिवृत्त शिक्षक के भुगतान के एवज में मांगी गई थी।
परिवादी कृष्णनन्द सिंह ने 21 अप्रैल को शिकायत दर्ज कराई थी कि उक्त दोनों कर्मचारी उनके सेवा-सम्बंधी भुगतान के बदले घूस मांग रहे हैं। सत्यापन के बाद आरोप सही पाए गए और विशेष धावादल ने भवानी होटल, अरवल में छापेमारी कर दोनों को रिश्वत लेते पकड़ लिया।
नोट गिनते-गिनते थक गई थी टीम: अधिकारी की कहानी और भी चौंकाने वाली
जनवरी 2025 में पश्चिमी चंपारण (बेतिया) के जिला शिक्षा पदाधिकारी रजनीकांत प्रवीण के ठिकानों पर जब विशेष निगरानी इकाई (SVU) ने छापा मारा, तो अफसर भी हैरान रह गए। छापेमारी में करीब 3 करोड़ रुपये नकद बरामद हुए। जांच में पाया गया कि रजनीकांत प्रवीण ने 2005 से 2025 तक की अवधि में अपनी आय से लगभग 1.87 करोड़ रुपये अधिक की संपत्ति अर्जित की थी।
नोटों की गिनती में जांच टीम को घंटों लग गए। शिक्षा विभाग में इतनी बड़ी राशि की बरामदगी पहली बार हुई थी, जिससे यह साबित होता है कि भ्रष्टाचार कितनी गहराई तक फैला हुआ है।
क्या कहता है ये पूरा मामला?
यह पूरा मामला दर्शाता है कि शिक्षा जैसे मूलभूत और संवेदनशील विभाग में किस तरह से छोटे कर्मचारी से लेकर बड़े अधिकारी तक, रिश्वत की गंदी संस्कृति में लिप्त हैं। जहां कंप्यूटर ऑपरेटर तक 50 हजार की मांग कर रहा है, वहीं DEO स्तर के अधिकारी करोड़ों की अवैध संपत्ति जोड़ रहे हैं।