वंशवाद नहीं थम रहा, हर दल ने अपने घरानों पर जताया भरोसा
पटना।बिहार की चुनावी सियासत इस बार पूरी तरह पारिवारिक रंग में रंगी दिख रही है। हर दल में परिवारवाद का बोलबाला है। टिकट बंटवारे में संगठन और जनता से ज्यादा तवज्जो रिश्तों को दी गई है।
राज्य के लगभग हर जिले में किसी न किसी बड़े नेता के घर से कोई-न-कोई रिश्तेदार चुनावी मैदान में है — कहीं सांसद की पत्नी, तो कहीं पूर्व मंत्री का बेटा, कहीं भांजा, तो कहीं बहू और समधन तक।
सारण के गरखा से चिराग पासवान ने अपने भांजे सीमांत मृणाल को उम्मीदवार बनाया है। वहीं गया से लेकर समस्तीपुर, औरंगाबाद से मुजफ्फरपुर तक, सियासत अब घर-घर की कहानी बन चुकी है।
वंशवाद बन गया है राजनीति की नई रणनीति
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बिहार की राजनीति में वंशवाद अब सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि चुनावी रणनीति का हिस्सा बन चुका है।
नेताओं की अगली पीढ़ी अब परिवार की सियासी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए मैदान में उतर रही है।
लेकिन बड़ा सवाल यह है — क्या जनता इन्हें “नेता” मानेगी या “नेताओं की औलाद” के रूप में ही देखेगी?
गायघाट से कोमल सिंह — मां सांसद, पिता एमएलसी
गायघाट से जदयू प्रत्याशी कोमल सिंह के परिवार की पूरी सियासी परंपरा मैदान में है।
मां वीणा देवी वैशाली से सांसद हैं, पिता जदयू के एमएलसी। नामांकन के वक्त कोमल से पूछा गया — “पूरा परिवार राजनीति में है, फिर अकेली नामांकन क्यों?”
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “सबका-अपना क्षेत्र है, सबको टिकट मिला है।”
गया में मांझी परिवार का दबदबा
गया जिले की 10 सीटों में से 4 सीटें ‘हम’ पार्टी के हिस्से में हैं — और सभी पर जीतनराम मांझी के परिवार या रिश्तेदार हैं।
- टिकारी से डॉ. अनिल कुमार
- अतरी से रोमित कुमार (भतीजे)
- बाराचट्टी से ज्योति देवी मांझी (समधिन)
- इमामगंज से दीपा मांझी (पतोहु)
पूरा गया जिला अब “मांझी परिवार का गढ़” कहा जा रहा है।
समस्तीपुर: नई विरासत बनाम पुरानी पहचान
चेरिया बरियारपुर सीट पर जदयू ने पूर्व मंत्री मंजू वर्मा के बेटे अभिषेक आनंद को टिकट दिया है, जबकि राजद ने पूर्व मुख्यमंत्री सतीश प्रसाद सिंह के बेटे सुशील सिंह कुशवाहा को मैदान में उतारा है।
दोनों युवा चेहरे एक ही मैदान में, एक ही सवाल के साथ — जनता अब किसे चुनेगी, अनुभव को या विरासत को?
रोहतास में सियासी घरानों की परीक्षा
सासाराम से स्नेहलता कुशवाहा (उपेंद्र कुशवाहा की पत्नी) रालोमो प्रत्याशी हैं।
दिनारा से आलोक सिंह, मंत्री संतोष सिंह के भाई हैं।
औरंगाबाद से भाजपा ने त्रिविक्रम नारायण सिंह (पूर्व सांसद गोपाल नारायण सिंह के पुत्र) को उतारा है।
करगहर में कांग्रेस ने संतोष मिश्रा, पूर्व मंत्री गिरीश नारायण मिश्रा के पुत्र को मैदान में उतारा है।
औरंगाबाद-नवीनगर: पिता-पुत्र की जोड़ी
औरंगाबाद से भाजपा प्रत्याशी त्रिविक्रम नारायण सिंह अपने पिता की राजनीतिक परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं, जबकि नवीनगर से जदयू ने चेतन आनंद (आनंद मोहन और लवली आनंद के पुत्र) को मैदान में उतारा है।
दोनों क्षेत्रों में मुकाबला दिलचस्प है — जनता तय करेगी कि भरोसा वंश पर है या विकास पर।
तरारी-बक्सर: पांडेय परिवार का प्रभाव कायम
तरारी से भाजपा विधायक विशाल प्रशांत (पूर्व जदयू विधायक सुनील पांडेय के पुत्र) फिर चुनावी मैदान में हैं।
उनके चाचा हुलास पांडेय बक्सर की ब्रह्मपुर सीट से लोजपा (आर) प्रत्याशी हैं।
शाहपुर से राकेश रंजन, दिवंगत भाजपा नेता विश्वेश्वर ओझा के पुत्र, भाजपा से उम्मीदवार हैं।
अन्य सीटों पर भी रिश्तों की चमक
- देश से राजद ने दीपू सिंह (पूर्व विधायक अरुण यादव के पुत्र) को उतारा है।
- सोनवर्षा (सु.) से सरिता पासवान (रामविलास पासवान की रिश्तेदार) कांग्रेस से मैदान में हैं।
- जमालपुर से नचिकेता मंडल, पूर्व सांसद ब्रह्मानंद मंडल के पुत्र, जदयू प्रत्याशी हैं।
- अलौली से यशराज पारस, केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस के बेटे, रालोजपा उम्मीदवार हैं।
जनता के सामने बड़ा सवाल
इस चुनाव में जनता के सामने असली सवाल यही है —
क्या राजनीति में मौका मेहनत से मिलेगा या सिर्फ खानदान से?
क्या जनता फिर वही नाम चुनेगी जो पीढ़ियों से सत्ता में रहे हैं, या इस बार बदलाव की दिशा में फैसला देगी?


