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भागलपुर, 28 मई 2025 —हर साल करोड़ों रुपये बिहार सरकार के बजट में बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं और सुंदर, सुसज्जित अस्पतालों के नाम पर आवंटित होते हैं। लेकिन जमीनी हकीकत क्या है, इसकी एक शर्मनाक बानगी भागलपुर जिले के कहलगांव अनुमंडल क्षेत्र से सामने आई है। यहां स्वास्थ्य उपकेंद्र अस्पतालों से ज्यादा तबेले में तब्दील हो चुके हैं।

20 साल से अस्पताल नहीं, तबेला बना ‘नयाटोला उपकेंद्र’

कहलगांव प्रखंड के भोलसर पंचायत के नयाटोला में साल 2003 में बना स्वास्थ्य उपकेंद्र आज चारा घर और मवेशियों का आश्रय स्थल बन चुका है।

  • कमरों में भूसा भरा हुआ है
  • अस्पताल के बरामदे में गायें बंधी हैं
  • भवन पूरी तरह जर्जर, दीवारें चटक चुकी हैं
  • स्वास्थ्य सेवाएं दूर-दूर तक उपलब्ध नहीं

स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि अस्पताल बनने से एक उम्मीद जगी थी कि डॉक्टर, नर्स, टीकाकरण और प्राथमिक इलाज की सुविधा मिलेगी। लेकिन 20 वर्षों में एक बार भी यह अस्पताल फंक्शनल नहीं हो पाया। ग्रामीणों ने खुद इसे तबेला बना डाला।

“अगर सरकार इसे शुरू करने की पहल करे, तो हम चारा और मवेशी हटा देंगे। लेकिन सुविधा तो मिले।” — एक स्थानीय ग्रामीण

एकचारी उपकेंद्र की स्थिति भी बदतर

एकचारी पंचायत में स्थित एकचारी स्वास्थ्य उपकेंद्र में हालात कुछ अलग नहीं हैं:

  • एक कमरे में सिर्फ कुर्सी-टेबल और ताला
  • दूसरे कमरे में गाय के लिए भूसा
  • पिलर से बंधी गाय
  • डॉक्टर-नर्स नदारद
  • शौचालय में ताला और भारी गंदगी

स्थानीय निवासियों ने बताया कि कभी-कभी नर्स आती हैं, और तुरंत चली जाती हैं। दवाइयाँ सीमित होती हैं और अस्पताल बंद ही पड़ा रहता है।

नया निर्माण भी अधूरा छोड़ दिया गया

चार साल पहले शुरू हुआ नया निर्माण कार्य भी बिना पूर्ण हुए बंद हो गया। नये भवन की दीवारें खड़ी हैं, लेकिन काम अधूरा है। ऐसा लगता है जैसे योजना शुरू करने के लिए थी, पूरा करने के लिए नहीं।

जिलाधिकारी का जवाब: “अब दिखवाते हैं”

जिलाधिकारी डॉ. नवल किशोर चौधरी से जब मीडिया ने सवाल किया तो उन्होंने स्वीकार किया कि यह मामला उनके संज्ञान में पहली बार आया है। उन्होंने कहा:

“हम दिखवाते हैं कि एकचारी का क्या हाल है। मेरा लक्ष्य है कि हर पंचायत में एक नहीं, दो स्वास्थ्य केंद्र हों। इसके लिए हमने ज़मीन चिह्नित की है और विभाग को भेजा है।”

सिस्टम पर बड़ा सवाल

यह पूरी स्थिति एक बड़ी विफलता और जवाबदेही की कमी को उजागर करती है:

  • क्या बजट सिर्फ कागज़ों में सजा रहता है?
  • क्या अफसर निरीक्षण करना जरूरी नहीं समझते?
  • करोड़ों की योजनाएं शुरू होती हैं, लेकिन पूरी क्यों नहीं होतीं?

भागलपुर, जहाँ मेडिकल कॉलेज और सुपर स्पेशलिटी अस्पताल तक हैं, वहां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तबेले में बदल जाएँ — यह केवल संसाधनों की कमी नहीं, बल्कि इच्छाशक्ति की कमी का प्रतीक है।