
शिवहर, बिहार – 20 जून 2025:
बिहार के शिक्षा विभाग में एक और वित्तीय अनियमितता का गंभीर मामला सामने आया है। इस बार फर्जीवाड़ा का आरोप शिवहर जिले के जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (DPO) पर है, जिन्होंने इलाज के नाम पर ₹1,57,081 की चिकित्सा प्रतिपूर्ति राशि की मांग की, जबकि जांच में सामने आया कि वास्तविक खर्च केवल ₹46,273 ही था।
SKMCH जांच में खुली पोल
शिक्षा विभाग ने जब इस प्रतिपूर्ति प्रस्ताव की जांच के लिए उसे श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (SKMCH), मुजफ्फरपुर भेजा, तो पूरा मामला उजागर हो गया। मेडिकल अधीक्षक की रिपोर्ट के अनुसार, प्रस्तुत बिलों में ₹1,10,808 की अतिरिक्त राशि शामिल थी। उन्होंने स्पष्ट रूप से इन बिलों पर सहमति देने से इनकार कर दिया और केवल असली खर्च की स्वीकृति दी।
मेडिकल अधीक्षक की रिपोर्ट: “वास्तविक चिकित्सा खर्च ₹46,273 से अधिक नहीं है, बाकी बिल संदिग्ध हैं और स्वीकार नहीं किए जा सकते।”
शिक्षा विभाग सख्त, जवाब-तलब
इस खुलासे के बाद शिक्षा विभाग के विशेष सचिव अनिल कुमार ने इसे एक गंभीर वित्तीय कदाचार बताया है और शिवहर के जिला शिक्षा पदाधिकारी (DEO) से तत्काल स्पष्टीकरण मांगा है। विभाग ने चेतावनी दी है कि यदि संतोषजनक जवाब नहीं मिला, तो DPO सहित अन्य संबंधित अधिकारियों पर कड़ी प्रशासनिक कार्रवाई की जाएगी।
कई और मामले खुलने की आशंका
सूत्रों की मानें तो यह घटना एकल मामला नहीं, बल्कि चिकित्सा प्रतिपूर्ति घोटालों की बड़ी श्रृंखला का हिस्सा हो सकती है। विभाग अब इस बात की समीक्षा कर रहा है कि पिछले वर्षों में किन-किन अधिकारियों ने इसी प्रकार की फर्जी या बढ़ी-चढ़ी चिकित्सा प्रतिपूर्तियों का दावा किया है।
“सरकारी विभागों में चिकित्सा प्रतिपूर्ति के नाम पर हेराफेरी कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस बार मामला रंगे हाथों पकड़ा गया है,” — विभागीय सूत्र।
प्रशासनिक जवाबदेही पर उठे सवाल
यह मामला केवल एक वित्तीय धोखाधड़ी नहीं, बल्कि प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही की भी गंभीर परीक्षा बन गया है। शिक्षा विभाग जैसे अहम संस्थान में इस प्रकार की अनियमितता से सरकारी खजाने को नुकसान तो होता ही है, जनता का विश्वास भी डगमगाता है।
अब देखना यह है कि विभाग मामले को दबाता है या व्यापक जांच कर अन्य मामलों को भी उजागर करता है।