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भागलपुर, 18 मई 2025गोराडीह गांव का एक ऐतिहासिक मकान, जो कभी डकैतों से पूरे गांव की सुरक्षा का गवाह था, आज खंडहर में तब्दील हो गया है, लेकिन इसकी कहानी अब भी लोगों की जुबान पर जिंदा है। यह मकान किसी आम जमींदार का नहीं, बल्कि रणनीतिक वास्तुकला का एक मिसाल है, जिसने न केवल अपने मालिक बल्कि पूरे गांव की रक्षा की थी।

डकैतों से लड़ने के लिए बना था यह घर

करीब 60–70 साल पहले, जब डकैतों का आतंक पूरे बिहार में फैला हुआ था, भागलपुर के गोराडीह गांव में जमींदार सुखदेव यादव ने ऐसा घर बनवाया जो सुरक्षा और युद्ध कौशल का जीता-जागता नमूना बन गया।

मुख्य विशेषताएं:

  • लोहे का भारी दरवाज़ा: 3 क्विंटल से ज्यादा वजनी, 4 फीट चौड़ा और 7 फीट ऊँचा, जिसे तोड़ना असंभव था।
  • कोई खिड़की या वेंटिलेटर नहीं: निचले फ्लोर पर सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सीलनुमा संरचना।
  • ऊपरी मंजिल पर बंदूक चलाने के लिए छेद: खिड़कियों की जगह गोल छेद, जिनसे भीतर से लाइसेंसी बंदूकों से डकैतों पर हमला किया जाता था।

गांव की ‘रक्षा दीवार’ था यह मकान

डकैत जब घोड़े पर सवार होकर गांव में प्रवेश करने की कोशिश करते, तो सबसे पहले सुखदेव यादव का यह मकान उनके रास्ते में दीवार बनकर खड़ा हो जाता। ऊपर से गोलीबारी और लोहे की सुरक्षा व्यवस्था देखकर डकैत अक्सर बिना लूटे ही वापस लौट जाते

अब वीरान हो चुका है गौरवशाली इतिहास

समय के साथ यह ऐतिहासिक विरासत अब जर्जर अवस्था में पहुंच गई है। कभी गांव की शान रहा यह मकान संरक्षण के अभाव में टूटने की कगार पर है।

स्थानीय निवासियों का कहना है:
“यह घर सिर्फ एक इमारत नहीं, गांव की रक्षा करने वाला प्रहरी था। सरकार या पुरातत्व विभाग को इसका संरक्षण करना चाहिए।”


क्या यह धरोहर बचेगी?

ऐसे अनोखे और ऐतिहासिक मकानों का संरक्षण स्थानीय प्रशासन और इतिहास प्रेमियों की ज़िम्मेदारी बनती है। यदि समय रहते इसे संजोया गया, तो यह भविष्य की पीढ़ियों को गांव के साहसिक अतीत से जोड़ने का माध्यम बन सकता है।