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पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के बीच पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने राज्य की मौजूदा सियासी हलचल पर गहरी चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र का पर्व किसी टकराव या सिरफुटव्वल का नहीं, बल्कि संवाद और सुचिता का उत्सव होना चाहिए। चौबे ने सोशल मीडिया पर एक भावनात्मक संदेश साझा करते हुए राजनीतिक दलों को संयम बरतने की सलाह दी।

अश्विनी चौबे ने अपने ट्वीट में लिखा —

“माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गर्व से कहते हैं कि बिहार लोकतंत्र की जननी है, तो पूरे भारत का गौरव बढ़ जाता है।
पर अफसोस, आज उसी बिहार में लोकतंत्र के महापर्व से पहले राजनीतिक सिरफुटव्वल हो रहा है — जो राजनीति की सुचिता के विपरीत है। ऐसी परिस्थिति पहले कभी नहीं हुई। शर्म आनी चाहिए।”

उन्होंने कहा कि जनता इस लोकतांत्रिक महापर्व को विश्वास और संवाद के उत्सव के रूप में मनाने के लिए तैयार है। लेकिन कुछ राजनीतिक दल इसे संघर्ष और अविश्वास का मैदान बना रहे हैं, जो लोकतंत्र की आत्मा के खिलाफ है।

पूर्व मंत्री ने आगे लिखा —

“आइए, सुचिता, संयम और संवाद से लोकतंत्र की गरिमा बचाएं।
लोकतंत्र की हिफाज़त हम सबका फ़र्ज़ है,
ये कोई मेला नहीं, ये जनविश्वास की नब्ज़ है।”

राजनीति में बढ़ती कटुता पर सवाल
अश्विनी चौबे का यह बयान ऐसे समय आया है जब बिहार में टिकट बंटवारे और सीट शेयरिंग को लेकर विभिन्न गठबंधनों में खींचतान जारी है। नेताओं के बीच बयानबाज़ी और विरोध प्रदर्शनों से माहौल गरम है। चौबे ने इस स्थिति पर अप्रत्यक्ष रूप से सभी दलों को निशाना बनाते हुए कहा कि लोकतंत्र की जड़ें तब ही मजबूत होंगी जब संवाद जीवित रहेगा।

चुनावी मौसम में सियासी मर्यादा की अपील
चौबे ने कहा कि “चुनाव विचारों का महायज्ञ है, इसमें वैचारिक मतभेद हो सकते हैं, लेकिन आचरण की मर्यादा नहीं टूटनी चाहिए।”
उन्होंने युवाओं से भी अपील की कि वे लोकतंत्र को “संघर्ष का नहीं, संस्कार का पर्व” समझें और शालीनता के साथ मतदान करें।

राजनीति में संस्कार और संयम का संदेश
पूर्व केंद्रीय मंत्री का यह ट्वीट न सिर्फ राजनीतिक तापमान के बीच मर्यादा का संदेश देता है, बल्कि यह भी याद दिलाता है कि बिहार की राजनीतिक विरासत संवाद और नैतिकता पर टिकी रही है।


 

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