
बिहार में भवन निर्माण विभाग की पहलें आधुनिकता और विरासत का सुंदर मेल
पटना, 02 जुलाई।बिहार की पहचान अब सिर्फ ऐतिहासिक विरासत से नहीं, बल्कि तेजी से बदलती आधुनिक संरचनाओं से भी बन रही है। इस परिवर्तन की मजबूत बुनियाद तैयार कर रहा है भवन निर्माण विभाग, जो राज्य की आकांक्षाओं को ईंट-पत्थर के माध्यम से आकार दे रहा है। विगत दो दशकों में इस विभाग ने ऐसी कई भव्य और उपयोगी इमारतें तैयार की हैं जो पारंपरिक शैली और आधुनिक तकनीक का अद्भुत संगम हैं।
तकनीक और आपदा प्रबंधन का प्रतीक: सरदार पटेल भवन
पुलिस मुख्यालय और आपदा प्रबंधन विभाग का केन्द्र सरदार पटेल भवन न केवल अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस है, बल्कि यह भूकंपरोधी तकनीक से भी सुरक्षित है। यह भवन बिना बिजली के लगातार 14 दिन तक संचालन में सक्षम है, जिससे यह किसी भी आपात स्थिति में कार्यशील रह सकता है।
प्रशासनिक गति को नई रफ्तार: नया पटना समाहरणालय
पुराने जर्जर भवनों की जगह अब पटना में तैयार एकीकृत समाहरणालय भवन राज्य की प्रशासनिक दक्षता की नई मिसाल बन चुका है। यहां 38 कार्यालयों सहित अनुमंडल और जिला परिषद कार्यालय एक ही परिसर में संचालित हो रहे हैं, जिससे कार्यों में पारदर्शिता और गति आई है।
रंगीन रोशनी में नहाए ऐतिहासिक भवन
विकास भवन और विश्वेश्वरैया भवन के नवीनीकरण के साथ-साथ फसाड लाइटिंग ने इन इमारतों को नया रूप दिया है। शाम ढलते ही ये भवन लाल, पीले, नीले और गुलाबी रौशनी से जगमगा उठते हैं, जो आधुनिक बिहार की रचनात्मकता को दर्शाते हैं।
छात्रों को समर्पित: बापू परीक्षा परिसर
प्रतियोगिता परीक्षा में पारदर्शिता और कुशल प्रबंधन के उद्देश्य से भवन निर्माण विभाग ने 25,000 विद्यार्थियों की क्षमता वाला बापू परीक्षा परिसर तैयार किया है। इसमें एक साथ 5000 छात्र ऑनलाइन परीक्षा भी दे सकते हैं। यह बिहार की शैक्षणिक आधारभूत संरचना में क्रांतिकारी बदलाव है।
बिहार की नई पहचान: बापू टावर
शहर के बापू सभागार परिसर में स्थित बापू टावर राज्य की शान बनता जा रहा है। शंकु आकार और तांबे के विशेष बाहरी आवरण से युक्त यह भवन पर्यावरण-अनुकूल तकनीक पर आधारित है। इसकी अनूठी वास्तुकला ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर एक विशेष पहचान दी है और यह पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन चुका है।
भवन निर्माण विभाग की ये पहलें न केवल बुनियादी सुविधाओं का विस्तार कर रही हैं, बल्कि वे बिहार की नई सांस्कृतिक और विकासशील पहचान भी रच रही हैं।
अब ये भवन सिर्फ ईंट और पत्थर से बनी संरचनाएं नहीं, बल्कि बिहार की उम्मीदों, तकनीकी दक्षता और सांस्कृतिक आत्मा का जीवंत प्रतिबिंब बन चुके हैं।