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बिहार में महिला खिलाड़ियों के लिए नई शुरुआत: खेल और स्वास्थ्य में बदलाव की कहानी

ByKumar Aditya

मई 2, 2025
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बिहार के खेल जगत में इन दिनों एक नई क्रांति देखने को मिल रही है। महिला खिलाड़ियों के खेल प्रदर्शन के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य, विशेषकर माहवारी जैसे विषयों पर भी अब खुलकर चर्चा हो रही है। यह बदलाव आया है सिंपली स्पोर्ट फाउंडेशन और बिहार स्पोर्ट्स डिपार्टमेंट की संयुक्त पहल से, जिसने राज्य में महिला खिलाड़ियों की जिंदगी को जमीनी स्तर पर छूने का साहसिक कदम उठाया है।

माहवारी पर टूटी चुप्पी, शुरू हुई खुली बातचीत

2023 से शुरू हुई इस पहल के तहत पटना, सिवान और दरभंगा में वर्कशॉप्स आयोजित की गईं। 15 साल से ऊपर की लड़कियों ने इन सत्रों में हिस्सा लिया। सर्वे में सामने आया कि अधिकतर लड़कियां सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल तो करती थीं, लेकिन हीमोग्लोबिन की कमी, पीसीओएस और पोषण की कमी के बारे में बहुत कम जानकारी थी। दर्द और थकान को सामान्य मान लिया जाता था, लेकिन इलाज या सलाह तक पहुंचना दुर्लभ था।

कोच और अभिभावक भी हुए शामिल

2024 में कोच और अभिभावकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए गए। जहां पहले माहवारी को ‘पर्सनल प्रॉब्लम’ कहा जाता था, अब खिलाड़ी खुद खुले तौर पर अपनी समस्याएं साझा कर रही हैं। कोचों को यह भी बताया गया कि माहवारी के दौरान ट्रेनिंग में कैसे बदलाव किया जा सकता है।

तकनीक और जागरूकता का मेल: ‘सिंपली बेरी’ ट्रैकर

2025 में एक नई शुरुआत हुई – ‘सिंपली बेरी’ व्हाट्सएप आधारित पीरियड ट्रैकर। इससे खिलाड़ी न केवल अपनी माहवारी को ट्रैक कर रही हैं, बल्कि खुद के शरीर को समझकर बेहतर प्रदर्शन कर पा रही हैं। यह तकनीक खेल और विज्ञान के संयोजन की मिसाल बन रही है।

खेलो इंडिया 2025 में नया अध्याय

खेलो इंडिया यूथ गेम्स 2025 के दौरान पहली बार एक विशेष पहल की जा रही है। ‘सिंपली पीरियड्स’ कियोस्क खिलाड़ियों को विभिन्न पीरियड प्रोडक्ट्स के उपयोग का अनुभव देगा, और खुले मंच पर संवाद की सुविधा भी उपलब्ध होगी। कोचों और माता-पिता के लिए भी संवेदनशीलता और समर्थन को बढ़ावा देने वाले सत्र आयोजित किए जाएंगे।

बिहार का मॉडल, देश के लिए प्रेरणा

बिहार की यह पहल न केवल राज्य में बदलाव ला रही है, बल्कि यह देश के अन्य हिस्सों के लिए एक प्रेरणादायक मॉडल भी बन सकती है। जब स्वास्थ्य और खेल साथ चलते हैं, तब लड़कियां आत्मनिर्भर बनती हैं और समाज की सोच भी बदलती है।

असली जीत: बराबरी का अवसर और आत्मविश्वास से भरी मुस्कानें

यह पहल केवल एक स्वास्थ्य परियोजना नहीं, बल्कि समानता, आत्मविश्वास और बदलाव का आंदोलन है। खेल के मैदान से शुरू होकर यह मुहिम अब समाज की सोच को बदलने की दिशा में बढ़ रही है।


 

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