राष्ट्रीय डॉल्फिन शोध केंद्र में धूमधाम से मनाया गया समारोह, मुख्य अतिथि अभय कुमार बोले — “यह केंद्र बनेगा सेंटर ऑफ एक्सीलेंस”
पटना | 5 अक्टूबर 2025: राजधानी पटना के दीघा स्थित राष्ट्रीय डॉल्फिन शोध केंद्र में रविवार को पहली बार राष्ट्रीय डॉल्फिन दिवस का आयोजन बड़े उत्साह और भव्यता के साथ किया गया।
कार्यक्रम का आयोजन पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, बिहार सरकार के तत्वावधान में किया गया, जिसमें गंगा डॉल्फिन संरक्षण का सशक्त संदेश दिया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अभय कुमार, अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक-सह-मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक, बिहार थे, जबकि विशिष्ट अतिथि संजय गांधी जैविक उद्यान, पटना के निदेशक हेमंत पाटिल उपस्थित रहे।
‘डॉल्फिन केवल बिहार की नहीं, पूरे देश की पहचान’
कार्यक्रम की शुरुआत संस्थान के अंतरिम निदेशक डॉ. गोपाल शर्मा के स्वागत भाषण से हुई। उन्होंने स्लाइड शो के माध्यम से बताया कि गंगा डॉल्फिन संरक्षण के लिए बिहार सरकार और केंद्र सरकार दोनों स्तरों पर कई ठोस पहल की जा रही हैं।
उन्होंने कहा —
“दीघा घाट से लेकर फतुहा त्रिवेणी घाट तक डॉल्फिन पेट्रोलिंग की सख्त जरूरत है। इससे शिकार पर रोक लगेगी और स्थानीय लोगों में संरक्षण की भावना मजबूत होगी।”
पटना जू के निदेशक हेमंत पाटिल ने अपने संबोधन में कहा कि गंगा डॉल्फिन (सोंस) केवल भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाती है, इसलिए इसका संरक्षण न सिर्फ बिहार बल्कि हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है।
‘डॉल्फिन मछली नहीं, एक स्तनधारी प्राणी है’
मुख्य अतिथि अभय कुमार ने कहा कि यह शोध केंद्र बिहार और पूरे देश के लिए गर्व की बात है। उन्होंने घोषणा की कि आने वाले समय में इसे ‘सेंटर ऑफ एक्सीलेंस’ के रूप में विकसित किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने 45 नए पदों की स्वीकृति दी है और इन पर नियुक्ति की प्रक्रिया शीघ्र शुरू की जाएगी।
अभय कुमार ने यह भी स्पष्ट किया —
“डॉल्फिन जिसे आम बोलचाल में ‘सोंस’ कहा जाता है, मछली नहीं बल्कि एक स्तनधारी जीव है। इसके संरक्षण के लिए वैज्ञानिक अध्ययन और मछुआरों का प्रशिक्षण बेहद जरूरी है। यह केंद्र इस दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा।”
‘संरक्षण से विकास का रास्ता’
कार्यक्रम में उपस्थित पर्यावरणविदों ने कहा कि गंगा की जैव विविधता का संतुलन डॉल्फिन से जुड़ा हुआ है। इसलिए इसके संरक्षण से न केवल नदी का पारिस्थितिकी तंत्र सुरक्षित रहेगा बल्कि स्थानीय समुदायों की आर्थिक आजीविका भी सशक्त होगी।
गंगा डॉल्फिन को भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया गया है और यह पर्यावरणीय स्वास्थ्य का सूचक मानी जाती है।
क्या है राष्ट्रीय डॉल्फिन शोध केंद्र
राजगीर, भागलपुर और पटना के बीच फैले गंगा बेसिन क्षेत्र में राष्ट्रीय डॉल्फिन शोध केंद्र की स्थापना पटना विश्वविद्यालय परिसर के पास गंगा तट पर की गई है।
यह देश का पहला ऐसा संस्थान है जो विशेष रूप से गंगा डॉल्फिन के अध्ययन, संरक्षण और जनजागरूकता पर केंद्रित है।
यहाँ आधुनिक प्रयोगशालाएँ, मॉनिटरिंग सिस्टम और प्रशिक्षण इकाइयाँ स्थापित की जा रही हैं ताकि डॉल्फिन संरक्षण को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सुदृढ़ किया जा सके।
कार्यक्रम में मौजूद रहे कई अधिकारी और विशेषज्ञ
इस अवसर पर पर्यावरण विभाग, वन्यजीव प्रभाग, पटना विश्वविद्यालय और एनजीओ प्रतिनिधि, मछुआरा समुदाय के सदस्य, शोधार्थी और पर्यावरण कार्यकर्ता बड़ी संख्या में मौजूद रहे।
सभी ने एक स्वर में कहा —
“गंगा बचेगी तो डॉल्फिन बचेगी, और डॉल्फिन बचेगी तो गंगा जिंदा रहेगी।”