Screenshot 2025 05 31 20 50 38 297 com.whatsapp edit
WhatsApp Channel VOB का चैनल JOIN करें

भागलपुर | 31 मई 2025: कभी भागलपुर की शान मानी जाने वाली चंपा नदी, जिसका जल अमृत जैसा माना जाता था, आज विषैला ज़हर बन चुकी है। यह वही चंपा है, जिसने कभी हजारों हेक्टेयर भूमि को सींचा, हजारों लोगों को जीवन दिया — और आज उसी नदी का पानी बीमारियों का स्रोत बनता जा रहा है।

इतिहास की धरोहर, वर्तमान में उपेक्षित

भागलपुर की पहचान जहां सिल्क और चंपा से रही है, वहीं अब यह पहचान धीरे-धीरे मिटती जा रही है
चंपानगर निवासी इतिहासकार आलोक कुमार बताते हैं, “चंपा केवल नदी नहीं, यह एक सांस्कृतिक धरोहर है। यह वही नदी है जो ‘सती बिहुला’ की अमर कथा की साक्षी रही है, जहां दानवीर कर्ण ने स्नान कर सूर्य को अर्घ्य दिया था।”

वे आगे बताते हैं कि यह नदी बांका की चंदन नदी से निकलती है, जो ऋषियों, मुनियों और औषधीय वनस्पतियों से भरे क्षेत्र से होकर बहती थी। चंदन, जड़ी-बूटियों और हरे पेड़ों की संगति से इस नदी का पानी औषधीय गुणों से भरपूर होता था। “चर्म रोग हो या आंखों की तकलीफ, लोग चंपा में स्नान कर स्वस्थ हो जाते थे,” वे कहते हैं।

अब चंपा है बीमार, और हमें भी बीमार कर रही है

लेकिन आज चंपा की हालत अत्यंत दयनीय है।
तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के रसायन विभागाध्यक्ष और बिहार केमिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. अशोक झा की हालिया शोध रिपोर्ट ने चौंका देने वाली सच्चाई सामने रखी है।
उन्होंने बताया, “चंपा नदी के जल में कैंसर जैसे रोगों के लिए जिम्मेदार रसायनिक तत्व पाए गए हैं। यह पानी न तो सिंचाई के लायक है और न ही मानव उपयोग के।”
इस पानी से उगी फसल भी स्वास्थ्य के लिए घातक साबित हो सकती है।

क्या खत्म हो जाएगी चंपा?

आज की स्थिति में चंपा बस एक गंदा नाला बन कर रह गई है। कहीं पानी सूख चुका है, और जहाँ है, वहाँ कचरे, केमिकल और सड़ांध का भंडार है। जो नदी कभी सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक जीवनरेखा थी, अब वह जन स्वास्थ्य संकट का कारण बन चुकी है।

आवश्यक है पुनर्जीवन का संकल्प

अब सवाल है – क्या हम इस ऐतिहासिक नदी को बचा पाएंगे?
क्या सरकार, प्रशासन और समाज मिलकर चंपा को फिर से अमृत बना पाएंगे?

यदि अब भी कदम नहीं उठाए गए तो भागलपुर की यह पहचान, यह इतिहास – सिर्फ किताबों में सिमट कर रह जाएगा।