“10 मिनट की आरती में जहां 10 लोग नहीं दिखते, वहीं 5 घंटे के गरबे में हजारों लोग जुट जाते हैं”
भागलपुर। नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा की भक्ति और आराधना के लिए माने जाते हैं। जिले के शक्तिपीठों और मंदिरों में लाखों श्रद्धालु कतारबद्ध होकर मां दुर्गा के दर्शन कर रहे हैं। दिन-रात भक्ति का माहौल है। लेकिन इसी बीच कुछ ऐसे आयोजन भी हो रहे हैं, जिन्होंने इस पवित्र पर्व की गरिमा पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
शहर के विभिन्न इलाकों में आयोजित हो रहे डांडिया और गरबा महोत्सव अब अपनी मूल परंपरा से भटकते नजर आ रहे हैं। जहां भक्ति गीतों और पारंपरिक गरबे की धुनों पर मां की स्तुति होनी चाहिए, वहां अब फूहड़ गानों की आवाजें गूंज रही हैं। मंच पर प्रस्तुत हो रहे कई नृत्य कार्यक्रम ऐसे हैं, जिनके वीडियो सोशल मीडिया पर साझा करने में भी लोग हिचकिचा रहे हैं।
आस्था से मनोरंजन तक का सफर
डांडिया महोत्सवों का उद्देश्य कभी मां दुर्गा की भक्ति और समाज को जोड़ना होता था। लेकिन अब स्थिति यह है कि आयोजक इन कार्यक्रमों को कमाई का साधन बना रहे हैं। टिकट और पास के नाम पर मोटी रकम वसूली जा रही है, जबकि मंच पर प्रस्तुतियां धार्मिक कम और मनोरंजन ज्यादा लगती हैं।
सवाल उठाती भीड़ की मानसिकता
विचारणीय बात यह है कि जहां 10 मिनट की आरती में बमुश्किल कुछ लोग नजर आते हैं, वहीं 5-5 घंटे तक चलने वाले डांडिया नाइट्स में हजारों की भीड़ उमड़ पड़ती है। सवाल यह है कि क्या नवरात्रि जैसे पवित्र पर्व का यही असली स्वरूप है? क्या हमारी संस्कृति और आस्था महज दिखावे और बाजारवाद तक सीमित होकर रह जाएगी?
संस्कृति बनाम आधुनिकता
धार्मिक विद्वानों और समाजशास्त्रियों का कहना है कि परंपराओं को आधुनिक रंग देना गलत नहीं है, लेकिन जब आयोजन अश्लीलता और फूहड़पन की ओर बढ़ने लगें, तो यह सीधा-सीधा हमारी संस्कृति और आस्था के साथ खिलवाड़ है। नवरात्रि सिर्फ नृत्य और संगीत का त्योहार नहीं है, बल्कि शक्ति और साधना का पर्व है।


