मिट्टी का स्वास्थ्य बेहतर, उपज में बढ़ोतरी और पर्यावरण संरक्षण को मिल रहा बल
पटना, 12 सितंबर।बिहार में खेती अब और टिकाऊ व पर्यावरण-अनुकूल दिशा में आगे बढ़ रही है। राज्य सरकार के कृषि रोडमैप और किसानों की बढ़ती जागरूकता से खेतों में उर्वरकों का संतुलित उपयोग होने लगा है। परिणामस्वरूप उपज भी बढ़ रही है और मिट्टी का स्वास्थ्य भी सुरक्षित हो रहा है।
उर्वरक खपत के आंकड़े
- 2020-21: 207.60 किग्रा प्रति हेक्टेयर
- 2023-24: 195.68 किग्रा प्रति हेक्टेयर
- 2024-25 (अनुमानित): 172.57 किग्रा प्रति हेक्टेयर
यानी, बिहार के किसान अब रासायनिक उर्वरकों का गैरज़रूरी उपयोग छोड़कर समझदारी से प्रयोग कर रहे हैं।
वैज्ञानिक अनुपात में एनपीके का उपयोग
- नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश (एनपीके) का 4:2:1 अनुपात अपनाने पर ज़ोर।
- जैविक और कार्बनिक खाद के साथ रासायनिक उर्वरकों का संतुलन।
- मिट्टी जाँच कार्यक्रम राज्य के सभी जिलों में उपलब्ध।
इससे किसानों को अपने खेत की ज़रूरत के हिसाब से सही खाद डालने की जानकारी मिल रही है।
फायदे
- फसलों की उत्पादकता में बढ़ोतरी
- किसानों की आय में सुधार
- गुणवत्ता वाली फसलें तैयार
- मिट्टी का स्वास्थ्य सुरक्षित
- पर्यावरण संरक्षण और टिकाऊ खेती को बढ़ावा
सरकार का लक्ष्य
बिहार सरकार चाहती है कि वैज्ञानिक अनुशंसाओं के अनुरूप उर्वरकों का उपयोग बढ़ाया जाए। इससे न केवल कृषि क्षेत्र में क्रांति आएगी बल्कि किसानों की आय और फसलों की गुणवत्ता में भी व्यापक सुधार होगा।


