गांधी मैदान: बिहार की सत्ता बदलने वाला मैदान, जहां लिखे गए इतिहास के सबसे बड़े राजनीतिक अध्याय

नीतीश का 10वां शपथ समारोह—इस मैदान की परंपरा, शक्ति और असर को फिर करेगा साबित

पटना : बिहार की राजनीति में गांधी मैदान सिर्फ एक खुला मैदान नहीं, बल्कि सत्ता, संघर्ष और जनशक्ति का सबसे बड़ा प्रतीक है। जब भी बिहार में कोई बड़ा राजनीतिक मोड़ आया—गांधी मैदान उसके केंद्र में खड़ा रहा। स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर संपूर्ण क्रांति तक… और आज की आधुनिक राजनीति तक… हर दौर ने इस मैदान को इतिहास की पहली पंक्ति में खड़ा किया है।

अब एक बार फिर 20 नवंबर को नीतीश कुमार अपने रिकॉर्ड 10वें कार्यकाल की शपथ लेने वाले हैं, और यह ऐतिहासिक दृश्य एक बार फिर इसी मैदान में लिखा जाएगा।

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गांधी मैदान: सत्ता का सबसे बड़ा मंच, जहां बदल गई बिहार की राजनीतिक दिशा

स्वतंत्रता की हुंकार से शुरू हुई कहानी

गांधी मैदान वह जगह है जहां महात्मा गांधी की सभाएं हुईं, अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन की चिंगारी उठी। बिहार की आजादी की लड़ाई में जिसे भी जनता तक पहुंचना था—उसने इसी मैदान को चुना।

जेपी आंदोलन—जहां से बदला पूरा देश

1974 का संपूर्ण क्रांति आंदोलन…
जेपी का वह नारा, जिसने इंदिरा गांधी की सत्ता को हिला दिया, वह भी इसी मैदान से उठा।
यही वह स्थान है जहां लाखों युवाओं ने ‘व्यवस्था बदलाव’ की शपथ ली और देश की राजनीति बदल गई।

आधुनिक राजनीति की धड़कन

आज भी बिहार की हर बड़ी राजनीतिक रैली की पहली पसंद यही मैदान है।
नई सरकार का संदेश, गठबंधन की ताकत, विपक्ष की हुंकार—सब यहीं से निकलकर पूरे राज्य में फैलती है।


शपथ ग्रहण का इतिहास: इस मैदान से 4 बार बने मुख्यमंत्री

गांधी मैदान सिर्फ रैलियों का केंद्र नहीं—यह सत्ता हस्तांतरण का सबसे बड़ा मंच भी रहा है।

अब तक 4 बार यहां सीएम बने

नीतीश कुमार — 3 बार

  • 2005
  • 2010
  • 2015

हर बार जनता का बड़ा जनसमूह, भव्य मंच और सत्ता के नए समीकरण—गांधी मैदान ने सब देखा।

लालू प्रसाद — 1990

90 का वह मौसम, जब लालू प्रसाद पहली बार सत्ता में आए।
उनकी शपथ ने बिहार की राजनीति को एक नई सामाजिक दिशा दी और इस मैदान में इतिहास गूंज उठा।


क्यों गांधी मैदान ही शपथ का सबसे बड़ा मंच?

आजतक–दैनिक भास्कर स्टाइल में समझिए—

राजनीतिक शक्ति का प्रतीक

यह मैदान बताता है—किसके पास जनता का जनादेश है और किसके पीछे लाखों की ताकत खड़ी है।

लोगों की सीधी भागीदारी

सैकड़ों नहीं, हजारों नहीं… बल्कि लाखों लोग यहां एक साथ मौजूद होते हैं।
यह सिर्फ शपथ नहीं—जनता का राजनीतिक उत्सव होता है।

राजनीतिक संदेश का मंच

यहां से उठे संदेश सीधे बिहार के गांव तक पहुंचते हैं।
किसकी सरकार कितनी मजबूत है—गांधी मैदान उसका पैमाना बन जाता है।


अब 20 नवंबर 2025—फिर से इतिहास लिखेगा गांधी मैदान

नीतीश कुमार 10वीं बार शपथ लेने जा रहे हैं।
यह सिर्फ एक शपथ नहीं—यह बिहार की राजनीति में एक रिकॉर्ड, एक संदेश और एक पूर्ण चक्र पूरा होने जैसा है।

पीएम मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह—सब होंगे मौजूद

यह शपथ समारोह अब तक के सबसे बड़े राजनीतिक आयोजनों में शामिल होने जा रहा है।

गांधी मैदान फिर साबित करेगा—यह सिर्फ एक मैदान नहीं, बिहार की राजनीति का दिल है।


 

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