
तानाशाही प्रवृत्तियों के विरुद्ध संघर्ष करने वालों को श्रद्धांजलि, लोकतंत्र की रक्षा के संकल्प की पुनर्पुष्टि
नई दिल्ली, 25 जून | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंगलवार को आयोजित केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में देश में आपातकाल लगाए जाने के 50 वर्ष पूरा होने के अवसर पर लोकतंत्र की रक्षा में संघर्षरत योद्धाओं को श्रद्धांजलि दी गई और एक राष्ट्र के रूप में संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के संकल्प को दोहराया गया।
मंत्रिमंडल की ओर से यह घोषणा उस ऐतिहासिक क्षण की स्मृति में की गई, जब 25 जून 1975 को आपातकाल लगाया गया था—भारत के लोकतंत्र के इतिहास का एक ऐसा अध्याय, जिसे संविधान हत्या दिवस के रूप में भी याद किया जाता है।
दमन और प्रतिरोध की स्मृति को किया गया नमन
बैठक के दौरान मंत्रिमंडल ने दो मिनट का मौन रखकर उन असंख्य नागरिकों को श्रद्धांजलि दी, जिनके मौलिक अधिकार उस दौरान छीन लिए गए थे और जिन्होंने अकल्पनीय भयावहता और यातनाओं का सामना किया।
सरकार ने आपातकाल के दौरान हुई संवैधानिक मूल्यों की अवहेलना, संघवाद को कमजोर करने और मानव गरिमा के दमन को एक अविस्मरणीय, दुखद और काले अध्याय के रूप में याद किया।
1974 के जनांदोलन से लेकर संविधान की अवहेलना तक
मंत्रिमंडल के अनुसार, 1974 में शुरू हुए नवनिर्माण आंदोलन और सम्पूर्ण क्रांति अभियान को कुचलने के प्रयास के साथ तत्कालीन सरकार द्वारा आपातकाल लागू किया गया, जिससे भारतीय गणतंत्र की आत्मा पर सीधा प्रहार हुआ।
इस दौर में देश ने स्वतंत्रता की हत्या, प्रेस सेंसरशिप, विरोध की मनाही और संविधान को निष्प्रभावी बनाए जाने की घटनाएं देखीं।
संविधान के प्रति प्रतिबद्धता की पुनर्पुष्टि
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने युवाओं से आह्वान किया कि वे उन हजारों साहसी व्यक्तियों से प्रेरणा लें, जिन्होंने लोकतांत्रिक ढांचे पर हमलों का साहसपूर्वक प्रतिकार किया। यह पुनः दोहराया गया कि भारतवासी अपने संविधान और लोकतांत्रिक परंपराओं के प्रति पूर्ण आस्था रखते हैं और भविष्य में भी उसका सशक्त संरक्षण करेंगे।
‘भारत लोकतंत्र की जननी है’ : मंत्रिमंडल
मंत्रिमंडल ने कहा, “भारत लोकतंत्र की जननी है और अपने संवैधानिक मूल्यों की रक्षा का एक जीवंत उदाहरण है।”
प्रधानमंत्री ने आह्वान किया कि हम सब एक राष्ट्र के रूप में संविधान की गरिमा और इसकी लोकतांत्रिक एवं संघीय भावना को अक्षुण्ण बनाए रखने के संकल्प को फिर से दोहराएं।