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पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए के भीतर सीटों के बंटवारे को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। सहयोगी दलों को संतुष्ट करने के लिए भाजपा को कई कुर्बानियां देनी पड़ रही हैं। इस चुनाव में सहयोगी दलों के आगे पार्टी के बड़े नेता भी अपने संसदीय क्षेत्र में हाशिए पर दिख रहे हैं।


जेडीयू और उपेन्द्र कुशवाहा की नाराजगी

सूत्रों के अनुसार, एनडीए में सीट बंटवारे के तुरंत बाद विवाद बढ़ गया। जेडीयू की नाराजगी दूर करने के लिए भाजपा ने कई सीटें छोड़ दीं, लेकिन इस प्रक्रिया में उपेन्द्र कुशवाहा की नाराजगी सामने आई। एनडीए के अंदर यह स्थिति भाजपा की रणनीति और उसके क्षेत्रीय नेताओं की ताकत पर भी सवाल खड़ा कर रही है।


राधामोहन सिंह की सीटिंग सीट चली गई

पूर्वी चंपारण संसदीय क्षेत्र के भाजपा सांसद राधामोहन सिंह इस चुनाव में अपनी सीट बचाने में असफल रहे। गोविंदगंज विधानसभा सीट, जो उनकी संसदीय क्षेत्र की सीटिंग सीट थी, लोजपा (रामविलास) के खाते में चली गई।

जानकार बताते हैं कि राधामोहन सिंह ने पटना और दिल्ली तक दौड़ लगाई, हर कोशिश की, लेकिन भाजपा ने उनकी डिमांड को खारिज कर सीट सहयोगी दल के लिए छोड़ दी। इसी के चलते उनके संसदीय क्षेत्र में राजनीतिक स्थिति कमजोर होती दिख रही है।


संसदीय क्षेत्र में अन्य सीटों का हाल

पूर्वी चंपारण संसदीय क्षेत्र में वर्तमान में भाजपा के चार विधायक हैं:

  • मोतिहारी
  • पीपरा
  • गोविंदगंज
  • हरसिद्धी

इनमें से पीपरा, मोतिहारी और हरसिद्धी की सीटें सुरक्षित रही, लेकिन गोविंदगंज सीट लोजपा (रामविलास) के खाते में चली गई।

विश्लेषकों का कहना है कि राधामोहन सिंह के लिए यह बड़ा झटका है। उनका राजनीतिक प्रभाव अब पहले जैसा नहीं रहा, और इस बार उनका संसदीय क्षेत्र भी चुनौतीपूर्ण बना हुआ है।


स्थानीय राजनीति में सेंधमारी

जानकारों के अनुसार, गोविंदगंज सीट का खोना राधामोहन सिंह की प्रतिष्ठा के लिए भी चुनौतीपूर्ण है। उनके राजनीतिक विरोधी राजू तिवारी ने यह सीट अपने नाम कर ली, जिससे स्थानीय राजनीति में अब भाजपा और उनके समर्थकों के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

सवाल उठता है कि क्या मोतिहारी में भी राधामोहन सिंह की पकड़ कमजोर हो रही है, और आगामी चुनाव में उनकी राजनीतिक पकड़ प्रभावित होगी।


 

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