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11 वर्षों में प्रौद्योगिकी-प्रेरित बदलावों ने भारत के भविष्य को नई दिशा दी: डॉ. जितेंद्र सिंह

नई दिल्ली।“विज्ञान समस्याओं का समाधान भर नहीं है, बल्कि संभावनाओं का विस्तार है।” — केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह के इस कथन में मोदी सरकार के बीते 11 वर्षों की तकनीकी यात्रा की आत्मा समाई है। जब 2014 में नरेंद्र मोदी ने देश की बागडोर संभाली, तो उनके नेतृत्व में भारत ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी को केवल प्रयोगशालाओं की चारदीवारी तक सीमित नहीं रहने दिया, बल्कि इसे जन-जीवन के हर क्षेत्र में शामिल कर दिया।

11 वर्षों की इस परिवर्तनकारी यात्रा ने भारत को वैश्विक विज्ञान का उपभोक्ता से निर्माता बनाने की दिशा में निर्णायक कदम बढ़ाए हैं। इस यात्रा की सबसे अहम बात यह रही कि विज्ञान को सत्ता के गलियारों से निकालकर गांव-गली तक ले जाया गया, जहाँ विज्ञान का लाभ अब आम आदमी महसूस कर रहा है।


अनुसंधान से सशक्तिकरण: हर हाथ में विज्ञान

2014 में भारत का वैज्ञानिक परिदृश्य बिखरा हुआ था—प्रतिभा थी, परंतु संसाधनों का अभाव था। अनुसंधान कुलीन संस्थानों तक सीमित था, और नवाचार का लाभ आम जनता तक नहीं पहुंच पा रहा था।

इस स्थिति को बदलने के लिए एक साहसिक निर्णय लिया गया—नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (ANRF) की स्थापना। यह पहला मौका था जब भारत ने अपने R&D को दिशा देने के लिए एक वैधानिक संस्था का गठन किया। इसके तहत न सिर्फ संस्थान बल्कि व्यक्ति को भी केंद्र में लाया गया।

  • 6900+ युवा वैज्ञानिकों को प्रधानमंत्री प्रारंभिक करियर अनुदान
  • 1754 अनुसूचित जाति/जनजाति समुदाय से आने वाले शोधकर्ताओं को समावेशी अनुसंधान अनुदान
    – यह केवल आंकड़े नहीं, बल्कि उस नए भारत का संकेत हैं जहाँ विज्ञान अब विशेषाधिकार नहीं, बल्कि सामूहिक अधिकार है।

संस्थान नहीं, नव भारत के स्तंभ

विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने महज योजनाएं नहीं बनाईं, बल्कि संस्थागत संरचना का विस्तार किया।

  • राष्ट्रीय क्वांटम मिशन: IIT और IISc में चार केंद्र स्थापित कर भारत को क्वांटम क्रांति की अग्रिम पंक्ति में लाया।
  • राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन: 28 सुपरकंप्यूटर स्थापित हुए, जिनका उपयोग जलवायु पूर्वानुमान, चिकित्सा अनुसंधान और रक्षा में किया जा रहा है।

यह विकास सिर्फ़ बुनियादी ढांचे का नहीं, सोच का भी विस्तार है—जहाँ मशीनें नहीं, बल्कि मिशन तैयार किए जा रहे हैं।


विज्ञान का चेहरा — मानवीय और समावेशी

प्रौद्योगिकी का उद्देश्य केवल उन्नति नहीं, सहानुभूति भी है।

  • IIT बॉम्बे का स्मार्ट एग्री-स्टेशन किसानों को मौसम और मिट्टी की जानकारी देता है।
  • IIT भिलाई का दिव्यांग ATM दृष्टिहीनों को सम्मानजनक बैंकिंग सुविधा देता है।
  • 46 महिला प्रौद्योगिकी पार्कों में 11,000 महिलाएं प्रशिक्षित हुईं — घर की गृहिणियाँ उद्यमी बनीं।

यह प्रगति ‘इनोवेशन फॉर ऑल’ की असल परिभाषा है।


जलवायु परिवर्तन से लड़ाई में विज्ञान बना विश्वस्त साथी

भारत ने जलवायु संकट से लड़ाई को विज्ञान की बुनियाद पर खड़ा किया है।

  • 29 राज्यों में जलवायु परिवर्तन केंद्र
  • 2000+ शोध पत्र और 1000 रिपोर्टें
  • 1.8 लाख से अधिक हितधारकों को प्रशिक्षण

हिमालय के ग्लेशियरों से लेकर बस्तर के गांवों तक, भारत जलवायु के मोर्चे पर सिर्फ़ ‘शोध’ नहीं कर रहा, रक्षा भी कर रहा है।


पूर्वोत्तर भारत: अब नवाचार का नया केंद्र

पहले हाशिए पर रहा पूर्वोत्तर अब ड्रोन आधारित मानचित्रण, केसर की खेती और बायोटेक स्टार्टअप्स का केंद्र बन चुका है।

  • NEC-Tech और Survey of India द्वारा 2 लाख गांवों का डिजिटल मानचित्रण
  • ग्रामीण भारत को जमीन पर कानूनी अधिकार की नई शक्ति

यह संकेत है कि भारत विज्ञान के भूगोल को फिर से परिभाषित कर रहा है।


भविष्य की राह: विज्ञान, निवेश और कल्पना का संगम

2025-26 के केंद्रीय बजट में 1 लाख करोड़ रुपये का RDI कोष,
20,000 करोड़ का डेडिकेटेड आवंटन,
डीपटेक स्टार्टअप्स के लिए फंड ऑफ फंड्स — ये वित्तीय नहीं, दृष्टिकोण की घोषणाएं हैं।

भारत अब केवल दुनिया की दौड़ में शामिल नहीं, बल्कि दिशा निर्धारित करने के लिए तैयार है।


विज्ञान भारत का अगुवा है, दर्शक नहीं

प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं — यह केवल सरकार नहीं, आंदोलन है। इस आंदोलन में विज्ञान एक मौन प्रेक्षक नहीं, प्रेरक शक्ति है।

अब हर गाँव, हर छात्र, हर वैज्ञानिक प्रयोगशाला यह कह रही है:
“हम खोजेंगे, बनाएँगे, और गढ़ेंगे — एक वैज्ञानिक भारत, एक समावेशी भारत।”