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राजनीति में खूबसूरती में इनका है जलवा, जाने कोन है ये

BySatyavrat Singh

अक्टूबर 18, 2023
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PATNA : चेहरे पर गजब की चमक. बड़ी-बड़ी मदहोश कर देनेवाली आंखें. छोटे-छोटे स्टायलिश बाल, करीने से पहनी साड़ी और स्लिवलेस ब्लाउज. बिहार की यह महिला सांसद जहां खड़ी हो जाती. वहां माहौल और मौसम दोनों ही बदल जाते. खूबसूरती ऐसी जो देखे वो खो जाए. जिस सीट से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कभी सांसद रहे हैं, वहां से लगातार 3 बार यह खूबसूरत महिला जीतकर संसद पहुंचीं. इस जिंदादिल और खूबसुरती की मिसाल कहीं जानेवाली तत्कालीन सांसद का नाम है तारकेश्वरी सिन्हा. उनकी खूबसूरती और काम के कई किस्से मशहूर है. उनके दीवानों के कई नाम है, तो नफरत करने वालों की भी कोई कमी नहीं हैं. उनमे से एक इंदिर गांधी भी थी. जी हां आयरन लेडी कहे जानेवाली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी.

 

बला की खूबसूरत

 

कहा जाता है कि तारकेश्वरी सिन्हा एक से बढ़कर एक साड़ियां पहनती थीं. फर्राटेदार हिन्दी और अंग्रेजी बोलनेवाली तारकेश्वरी सिन्हा जब उर्दू की शेरो-शायरी का अपने भाषणों में इस्तेमाल करती थीं तो समां बंध जाता था. तारकेश्वरी सिन्हा खुद अपने डायरी में कविता और शेरो-शायरी लिखती है. उन्हें पढ़ने-लिखने और पढ़ाने का भी बड़ा शौक था. वह हमेशा लेख लिखती रहती थी. बड़े समाचार पत्रों में इनके लेख छपते थे.

 

 

बाढ़ से बनी सांसद

 

जिस महिला से इंदिरा गांधी को चिढ़ हो, उसकी हैसियत और खूबसूरती का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है. इंदिरा गांधी पर जीवनी लिखने वाली कैथरीन फ्रेंक ने अपनी किताब ‘इंदिरा’ में लिखा कि किसी जमाने में फिरोज गांधी का खुलेआम अफेयर तारकेश्वरी सिन्हा से चला था. इसी किताब में कैथरीन ने तारकेश्वरी सिन्हा को ‘The glamour girl of the Indian Parliament’ कहा है. इंदिरा गांधी ने कभी इन्हें पसंद नहीं किया. पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1952 में उन्हें पटना से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ने को कहा. महज 26 साल की उम्र में तारकेश्वरी सिन्हा सांसद बन चुकी थीं.

 

तारकेश्वरी सिन्हा की शुरुआती जिंदगी

 

तारकेश्वरी सिन्हा का जन्म 26 दिसंबर 1926 को नालंदा जिले के चंडी के पास तुलसीगढ़ गांव में एक भूमिहार परिवार में हुआ था. उन्होंने पटना के बांकीपुर गर्ल्स कॉलेज (अब मगध महिला कॉलेज) में पढ़ाई कीं. बाद में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में एमएससी किया. तारकेश्वरी सिन्हा के पिता डॉक्टर नंदन प्रसाद सिन्हा पटना में सर्जन थे, वो उनकी इकलौती बेटी थीं. पढ़ाई के दौरान ही स्टूडेंट पॉलिटिक्स में इंट्रेस्ट हो गया. 19-20 साल की उम्र में देखते ही देखते बिहार की बड़ी छात्र नेता के तौर पर पहचान बना लीं. 1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. आजादी के बाद 1952 में हुए पहले चुनाव में महज 26 वर्ष की उम्र में लोकसभा सांसद चुनी गईं. इसके बाद 1957, 1962 और 1967 में बाढ़ संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा पहुंचीं. 1958-64 तक जवाहरलाल नेहरू केंद्रीय कैबिनेट में पहली महिला उप वित्त मंत्री थीं. उन्हें मोरारजी देसाई का करीबी माना जाता था. लाल बहादुर शास्त्री के बाद जब प्रधानमंत्री चुनने की बारी आई तो वो मोरार जी देसाई के पक्ष में खड़ी दिखीं. बाद में वो मोरार जी देसाई के पक्ष में कांग्रेस से अलग हो गईं. फिर कांग्रेस में लौट आईं और 1971 के लोकसभा चुनावों में बिहार के बाढ़ से चुनाव हार गईं. ये उनकी पहली हार थी. इसके बाद वो लगातार हारती चली गईं. आखिरी चुनाव उन्होंने समस्तीपुर से नवंबर 1978 लड़ा था, लेकिन फिर वो हार गईं. इसके बाद उन्होंने राजनीतिक जीवन से संन्यास ले लिया. इनका देहांत 80 साल की उम्र में 14 अगस्त 2007 को हो गया.


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I am satyavrat Singh news reporter of vob from Munger Bihar.

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