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कांग्रेस को रिझाने के लिए पप्पू यादव का नया पैंतरा: मरी हुई पार्टी का करेंगे विलय!

ByLuv Kush

मई 5, 2025
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पटना, 5 मई 2025:

पूर्णिया से निर्दलीय सांसद और जन अधिकार पार्टी (जाप) के प्रमुख पप्पू यादव ने कांग्रेस को प्रभावित करने की एक और कोशिश की है। अब उन्होंने उस पार्टी — जाप — का कांग्रेस में विलय करने की घोषणा कर दी है, जिसे उन्होंने खुद ही एक साल पहले समाप्त मान लिया था। दिलचस्प बात यह है कि पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने इसी पार्टी के नाम पर नहीं, बल्कि निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था।

राहुल गांधी की नज़रों में आने की आख़िरी कोशिश?

सूत्रों के मुताबिक, पप्पू यादव पिछले एक साल से राहुल गांधी से मुलाकात करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अब तक उन्हें कोई समय नहीं मिल पाया। कई बार दिल्ली जाकर समय माँगा, लेकिन हर बार नाकामी हाथ लगी। पटना में राहुल गांधी के ठहरने वाले होटल में उन्होंने बगल में कमरा बुक किया, लेकिन सुरक्षा कारणों से उन्हें वहाँ से हटाया गया।

जब राहुल गांधी “संविधान बचाओ” रैली के लिए पटना आए थे, तब पप्पू ने आयोजकों से पास माँगा, लेकिन उन्हें मंच तक पहुँचने की अनुमति नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने राहुल का सड़क पर स्वागत करने का ऐलान किया — लेकिन वह भी नाकाम रहा। बीते छह महीनों में राहुल दो बार कांग्रेस प्रदेश कार्यालय गए, लेकिन पप्पू यादव को अंदर जाने की इजाज़त नहीं मिली।

एक बार फिर जाप के विलय की घोषणा

अब पप्पू यादव ने एक और राजनीतिक पैंतरा चला है। रविवार को उन्होंने पटना में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर घोषणा की कि वे अपनी पुरानी पार्टी, जन अधिकार पार्टी (जाप), का कांग्रेस में विलय करेंगे। यह वही पार्टी है जिसका एक साल पहले विलय होने की बात वे खुद कर चुके थे। इतना ही नहीं, पप्पू यादव ने खुद जाप से चुनाव भी नहीं लड़ा था — यानी पार्टी पहले ही निष्क्रिय मानी जा रही थी।

प्रेस वार्ता में पप्पू ने बताया कि उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व से मिलने का समय माँगा है और यदि समय मिला तो पटना के गांधी मैदान में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की मौजूदगी में एक बड़ी रैली कर विलय की औपचारिक घोषणा करेंगे।

कांग्रेस को ‘बिना पूछे’ सलाह

पप्पू यादव अब कांग्रेस को सलाह भी दे रहे हैं। उनका कहना है कि बिहार में महागठबंधन में कांग्रेस सबसे बड़ा दल है और उसे अगली विधानसभा चुनाव में कम से कम 100 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए। दिलचस्प बात यह है कि महागठबंधन की किसी बैठक में पप्पू यादव की कोई भूमिका या चर्चा नहीं होती है।

राजनीतिक विश्लेषण: आत्मप्रचार या रणनीति?

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि पप्पू यादव की यह रणनीति आत्मप्रचार की कोशिश है, ताकि कांग्रेस से किसी तरह जुड़ाव बने और भविष्य में कोई भूमिका मिल सके। लेकिन जिस कांग्रेस ने अब तक उन्हें भाव नहीं दिया, उसमें विलय कर पाना और स्वीकार किया जाना — दोनों ही असंभव नहीं तो मुश्किल ज़रूर लगते हैं।

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