
नई दिल्ली/तेहरान, 27 मई 2025 – पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भारत के साथ शांति वार्ता की इच्छा जताकर एक बार फिर क्षेत्रीय कूटनीति में हलचल पैदा कर दी है। ईरान की राजधानी तेहरान में आयोजित एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान शरीफ ने कहा कि उनका देश कश्मीर, जल विवाद, व्यापार, और आतंकवाद विरोधी सहयोग जैसे तमाम मुद्दों पर भारत से बातचीत करना चाहता है।
शरीफ ने ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियान के साथ साझा बयान में कहा, “हम शांति के लिए भारत से बात करने को तैयार हैं। हम क्षेत्र में स्थायित्व चाहते हैं और सभी लंबित मुद्दों को टेबल पर सुलझाना चाहते हैं।”
लेकिन सवाल यह है – भरोसा कैसे किया जाए?
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के इस प्रस्ताव के बाद भारत की जनता का गुस्सा सोशल मीडिया पर फूट पड़ा। एक यूज़र ने तीखी टिप्पणी करते हुए लिखा – “पागल कुत्ते पर भरोसा कर लेंगे, लेकिन पाकिस्तान पर कभी नहीं।” कई अन्य लोगों ने इसे “कूटनीतिक दिखावा” और “दबाव में आया कदम” करार दिया।
पृष्ठभूमि: हालिया तनाव और ऑपरेशन सिंदूर
शरीफ का यह प्रस्ताव उस समय आया है जब भारत और पाकिस्तान के बीच हालात पहलगाम आतंकी हमले और उसके जवाब में भारत द्वारा किए गए ऑपरेशन सिंदूर के बाद काफी तनावपूर्ण रहे हैं। पहलगाम में हुए हमले में 26 भारतीय नागरिकों की मौत हुई थी। इसके जवाब में भारत ने पाकिस्तान और पाक-अधिकृत कश्मीर में नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाते हुए 100 से अधिक आतंकवादियों को मार गिराया था।
इसके बाद 8-10 मई को पाकिस्तान ने ड्रोन और मिसाइल हमलों से जवाबी कार्रवाई की कोशिश की, लेकिन भारतीय रक्षा बलों ने सख्त प्रतिक्रिया दी। 10 मई को दोनों देशों के सैन्य संचालन महानिदेशकों के बीच बातचीत में सीज़फायर पर सहमति बनी थी।
भारत का रुख – साफ और सख्त
भारत सरकार इस बार पाकिस्तान के “शांति प्रस्ताव” को हल्के में नहीं ले रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 मई को भुज में एक चुनावी रैली के दौरान कहा, “पाकिस्तान को शांति चुननी होगी, वरना भारत की गोली तैयार है।” विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी स्पष्ट किया कि कोई भी वार्ता सिर्फ आतंकवाद और पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर (PoK) की वापसी पर हो सकती है।
मध्यस्थता से इनकार, सऊदी पर भी नहीं बना सहमति
शरीफ ने वार्ता के लिए सऊदी अरब को तटस्थ स्थान के रूप में सुझाया, लेकिन भारत ने किसी भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को सिरे से खारिज कर दिया। भारत का स्पष्ट मानना है कि सभी मुद्दे केवल द्विपक्षीय रूप से ही हल किए जा सकते हैं – न कि अमेरिका, ईरान, या किसी अन्य देश की मध्यस्थता से।
क्या यह पाकिस्तान की मजबूरी है?
विश्लेषकों का मानना है कि शरीफ का यह प्रस्ताव ऑपरेशन सिंदूर के दबाव में लिया गया कदम है। सैन्य कार्रवाई के बाद पाकिस्तान को न सिर्फ कूटनीतिक स्तर पर झटका लगा है, बल्कि उसकी वैश्विक छवि और आतंकी नेटवर्क को भी भारी नुकसान पहुंचा है।