पटना। बिहार विधानसभा का बुधवार का दिन राजनीतिक सहमति और संसदीय परिपक्वता का प्रतीक बनकर उभरा। वरिष्ठ नेता नरेंद्र नारायण यादव के निर्विरोध उपाध्यक्ष चुने जाने की औपचारिक घोषणा जैसे ही सदन में की गई, पूरा माहौल सम्मान और स्वीकार्यता के भाव से भर उठा। बिना किसी विरोधी उम्मीदवार के उनके निर्वाचन ने यह स्पष्ट किया कि सदन की प्रमुख राजनीतिक शक्तियों के बीच व्यापक सहमति बनी है।
निर्विरोध चयन से मिला सकारात्मक संदेश
नरेंद्र नारायण यादव का निर्विरोध चयन राजनीतिक हलकों में एक सकारात्मक संकेत के रूप में देखा जा रहा है। यह बताता है कि विधायी कार्यों के संचालन में विवाद या राजनीतिक तनाव के बजाय स्थिरता और सहयोग को प्राथमिकता दी जा रही है।
सदन में उनके विशाल अनुभव, शांत स्वभाव और संतुलित राजनीतिक दृष्टिकोण की लंबे समय से सराहना होती रही है। उपाध्यक्ष पद पर नियुक्ति इसी भरोसे की निरंतरता है।
जिम्मेदारी और भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण
पदभार ग्रहण करने के बाद अब यादव की जिम्मेदारी और भी बढ़ गई है। विधानसभा उपाध्यक्ष के रूप में वे अध्यक्ष की अनुपस्थिति में सदन की कार्यवाही का संचालन करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि हर प्रक्रिया निष्पक्षता, मर्यादा और संवैधानिक नियमों के अनुरूप संपन्न हो।
विधायी प्रक्रियाओं में उनकी भूमिका न केवल तकनीकी होगी, बल्कि सदन के भीतर लोकतांत्रिक संतुलन बनाए रखने में भी अहम साबित होगी।
सदन में सहयोग की नई मिसाल
यादव का निर्विरोध निर्वाचन यह भी संकेत देता है कि बिहार विधानसभा इस शीतकालीन सत्र में अपने महत्वपूर्ण विधायी एजेंडे को सुचारू रूप से आगे बढ़ाने के लिए तैयार है।
ऐसे समय में जब राजनीतिक ध्रुवीकरण कई बार कार्यवाही में बाधा उत्पन्न करता है, उनका चयन सदन में सहयोगात्मक राजनीति की एक सकारात्मक मिसाल के रूप में उभरकर सामने आया है।


