
नई दिल्ली, जून 2025 —मानवजनित जलवायु परिवर्तन का प्रभाव आज पूरे विश्व में प्रत्यक्ष रूप से महसूस किया जा रहा है। आईपीसीसी की छठी आकलन रिपोर्ट दर्शाती है कि 2011-2020 के दशक में पृथ्वी का औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। वहीं दूसरी ओर, भारत ने बीते ग्यारह वर्षों में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नीति, विज्ञान और सांस्कृतिक मूल्यों को समाहित करते हुए एक वैश्विक उदाहरण प्रस्तुत किया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने 2014 के बाद से पर्यावरण मंत्रालय में जलवायु परिवर्तन को केंद्रीय स्थान दिया। 2015 में जलवायु परिवर्तन के लिए राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (NAFCC) की स्थापना कर राज्यों को संकट से निपटने के लिए संसाधन उपलब्ध कराए गए।
अंतरराष्ट्रीय पहल और नेतृत्व
भारत की वैश्विक भूमिका 2015 के पेरिस समझौते से लेकर 2021 के ग्लासगो में घोषित ‘पंचामृत’ तक स्पष्ट रूप से सामने आई। अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA), आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI), और उद्योग बदलाव समूह (LEAD-IT) जैसे वैश्विक गठबंधनों के जरिए भारत ने विकासशील देशों की आवाज को मुखर किया।
भारत वर्तमान में सौर ऊर्जा क्षमता में दुनिया में तीसरे, पवन ऊर्जा में चौथे और कुल नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में भी चौथे स्थान पर है।
नीतिगत बदलाव और योजनाएं
सरकार की कई योजनाएं जैसे प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, पीएम-कुसुम योजना, रूफटॉप सोलर प्रोग्राम, राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन और सूर्य घर योजना ने जलवायु न्याय को सामाजिक न्याय से जोड़ा। वर्ष 2025 के बजट में 20,000 करोड़ रुपये का आवंटन कर भारत ने छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMRs) के विकास के लिए परमाणु ऊर्जा मिशन भी शुरू किया।
लाइफस्टाइल और जनभागीदारी
भारत का मिशन LiFE (पर्यावरण के लिए जीवनशैली) नागरिकों को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ व्यक्तिगत योगदान देने की दिशा में प्रेरित करता है। “एक पेड़ माँ के नाम” जैसे अभियानों ने वनीकरण को भावनात्मक जन आंदोलन में बदला।
वैश्विक दृष्टिकोण
भारत की जी-20 अध्यक्षता के दौरान जलवायु विषय को विभिन्न कार्य समूहों में प्राथमिकता दी गई। वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन, अंतरराष्ट्रीय बिग कैट गठबंधन जैसे मंचों के जरिए भारत ने समाधान आधारित नेतृत्व को बढ़ावा दिया है।
निष्कर्ष
भारत आज केवल जलवायु परिवर्तन से जूझने वाला देश नहीं है, बल्कि उस दिशा में स्पष्ट रोडमैप के साथ आगे बढ़ने वाला मार्गदर्शक भी बन चुका है। प्रधानमंत्री मोदी ने दिखाया है कि जलवायु नेतृत्व वैज्ञानिक समझ और सांस्कृतिक चेतना, दोनों का समन्वय मांगता है।
नोट: यह लेख केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव द्वारा लिखा गया है। इसमें व्यक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं।