
वॉशिंगटन, 18 मई 2025 — अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने पाकिस्तान को 7 अरब डॉलर के लोन के लिए 11 नई शर्तें सौंप दी हैं। इसके साथ ही IMF ने भारत के साथ बढ़ते तनाव को पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए “बड़ा जोखिम” बताया है।
पाकिस्तानी अख़बार एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, इन शर्तों को मानना पाकिस्तान के लिए बेहद कठिन साबित हो सकता है, क्योंकि इनमें टैक्स वृद्धि से लेकर आयात प्रतिबंध हटाने जैसे कई कड़े फैसले शामिल हैं।
नई शर्तों में क्या है खास?
IMF की 11 नई शर्तों में प्रमुख रूप से शामिल हैं:
- 17.6 लाख करोड़ रुपये के बजट की मंजूरी।
- बिजली बिलों पर डेट सर्विसिंग सरचार्ज में इजाफा।
- तीन साल से अधिक पुरानी कारों के आयात पर प्रतिबंध हटाना।
- जून 2025 तक संसद से बजट पास कराना।
इन नई शर्तों के साथ पाकिस्तान पर कुल शर्तों की संख्या अब 50 हो चुकी है — जो किसी भी IMF डील में असामान्य रूप से बड़ी संख्या मानी जाती है।
भारत-पाक तनाव: राजकोष और सुधारों पर खतरा
शनिवार को जारी IMF की रिपोर्ट के अनुसार, “भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव का असर न सिर्फ पाकिस्तान की वित्तीय स्थिति पर पड़ेगा, बल्कि सुधार कार्यक्रमों और विदेशी व्यापार पर भी नकारात्मक प्रभाव डालेगा।” रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि:
“पिछले दो हफ्तों में भारत-पाक रिश्तों में तनाव स्पष्ट रूप से बढ़ा है, हालांकि अभी तक बाजारों ने हल्की प्रतिक्रिया ही दी है।”
बढ़ता रक्षा खर्च: IMF की नजर में खतरा
IMF ने पाकिस्तान के वित्त वर्ष 2026 के रक्षा बजट को लेकर भी चिंता जताई है। अनुमान है कि यह 2.414 लाख करोड़ रुपए तक जा सकता है, जो पिछले साल की तुलना में 12% अधिक है। जबकि सरकार ने इसके 2.5 लाख करोड़ से अधिक रहने के संकेत दिए हैं — यह भारत से बढ़े तनाव का सीधा असर माना जा रहा है।
विकास पर कम, घाटे पर भारी खर्च
IMF ने पाकिस्तान के 17.6 लाख करोड़ रुपए के बजट की भी आलोचना की है। रिपोर्ट में कहा गया है:
- सिर्फ 1.07 लाख करोड़ रुपए विकास योजनाओं पर खर्च होंगे।
- जबकि 6.6 लाख करोड़ रुपए का राजकोषीय घाटा है।
- देश की अर्थव्यवस्था गंभीर दबाव में है, और बिना सुधारों के यह संकट और गहराएगा।
निष्कर्ष: लोन के बदले भारी कीमत, अस्थिरता की ओर बढ़ता पाकिस्तान
IMF की सख्त शर्तों और भारत के साथ तनाव के चलते पाकिस्तान की आर्थिक हालत और भी नाजुक हो सकती है। एक तरफ विकास पर खर्च घटाया जा रहा है, दूसरी तरफ रक्षा खर्च और राजकोषीय घाटा तेजी से बढ़ रहा है। आने वाले महीनों में यह देखना अहम होगा कि पाकिस्तान इन शर्तों को कैसे निभाता है, और क्या वह IMF के भरोसे अपनी डूबती अर्थव्यवस्था को बचा पाता है।