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एचएएल सुखोई एसयू-30 एमकेआई जेट के उत्पादन के लिए नासिक प्लांट करेगी तैयार

ByKumar Aditya

नवम्बर 15, 2024
Jet 1 jpgIN FLIGHT - APRIL 09: A French air force Rafale fighter jet flies over the Mediterranean sea during the air operation "Harmattan" April 9, 2011 near Libya. The no-fly zone operation is under the control of NATO in accordance with the United Nations resolution that was passed in March of 2011. (Photo by Patrick Aventurier/Getty Images)

हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) अपने नासिक प्लांट के संचालन को फिर से शुरू करने के लिए तैयार है। यह फैसला सितंबर 2023 में स्वीकृत 1.3 बिलियन अमरीकी डॉलर के एक बड़े उत्पादन ऑर्डर के बाद लिया गया है। इस उत्पादन ऑर्डर में 12 नए सुखोई एसयू-30 एमकेआई लड़ाकू विमानों के निर्माण की बात कही गई है।

नासिक प्लांट को एसयू-30 एमकेआई के लिए विनिर्माण केंद्र के रूप में ही स्थापित किया गया था। नासिक प्लांट का दोबारा से संचालन ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए भारत के प्रयासों को समर्थन देगा। नए उत्पादन ऑर्डर के अलावा, ‘सुपर सुखोई’ कार्यक्रम के तहत 84 मौजूदा एसयू-30 एमकेआई लड़ाकू विमानों को अपग्रेड करने की तैयारी की जा रही है।

इस अपग्रेड योजना पर लगभग 63,000 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। ‘सुपर सुखोई’ पहल इन विमानों की लड़ाकू क्षमता को बढ़ाने को लेकर अहम होगी, जिसमें स्वदेशी टेक्नोलॉजी और एडवांस फीचर्स शामिल होंगे।

एडवांस ‘सुपर सुखोई’ जेट में मौजूदा मॉडलों की तुलना में 1.5 से 1.7 गुना अधिक रेंज वाली एडवांस रडार सिस्टम, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) द्वारा विकसित इन्फ्रारेड सर्च और ट्रैक (आईआरएसटी) सेंसर और अत्याधुनिक मिशन कंप्यूटर शामिल होंगे।

‘सुपर सुखोई’ अपग्रेड कार्यक्रम के पूरा होने की अपेक्षित समय-सीमा कई वर्ष हैं। प्रारंभिक चरण अंतिम सरकारी अनुमोदन के तुरंत बाद शुरू होने का अनुमान है। विशेषज्ञों को उम्मीद है कि पूर्ण आधुनिकीकरण प्रयास अगले 8-10 वर्षों में सामने आएगा, जिससे वायु सेना की क्षमताओं में चरणबद्ध तरीके से वृद्धि होगी।

नए एसयू-30 एमकेआई के नासिक प्लांट से सप्लाई अगले कुछ वर्षों में शुरू होने की उम्मीद है, जिससे भारतीय वायुसेना के परिचालन बेड़े को बढ़ावा मिलेगा।

नासिक प्लांट को दोबारा से शुरू करना ‘सुपर सुखोई’ उन्नयन भारत के रक्षा क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे न केवल भारतीय वायुसेना की परिचालन शक्ति बल्कि एचएएल के मैन्युफैक्चरिंग और तकनीकी विशेषज्ञता भी बढ़ेगी।


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