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पटना | 14 जून 2025

बिहार की दलित राजनीति में इन दिनों जुबानी टकराव का नया दौर शुरू हो गया है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के दो प्रमुख दलित चेहरे – केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान और जीतन राम मांझी – अब अप्रत्यक्ष रूप से एक-दूसरे के विचारों के आमने-सामने खड़े हैं। दोनों ही नेता बिहार के दलित समुदाय के सबसे बड़े नेता के रूप में खुद को स्थापित करने की कोशिशों में जुटे हैं।

आरक्षण पर बंटी राय: मांझी फैसले के पक्ष में, चिराग विरोध में चुप

दलित नेतृत्व को लेकर ताज़ा विवाद की शुरुआत एससी/एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर और ‘कोटा में कोटा’ को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले के बाद हुई।

हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) के संस्थापक और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने कोर्ट के फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि यह निर्णय बहुत पहले आ जाना चाहिए था।

“पिछले 76 वर्षों से सिर्फ चार जातियां आरक्षण का लाभ उठा रही हैं। भुइयां, मुसहर, मेहतर जैसी वंचित जातियों की हालत अभी भी बदतर है। इनकी साक्षरता दर और प्रशासनिक भागीदारी बहुत कम है। इन्हें प्राथमिकता मिलनी चाहिए।” – जीतन राम मांझी

उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि इन जातियों में कितने लोग आईएएस, आईपीएस, या चीफ इंजीनियर बने हैं?

चिराग पासवान: आरक्षण में बंटवारा नहीं, स्वैच्छिक क्रीमी लेयर का सुझाव

वहीं लोजपा (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान का रुख इस मुद्दे पर पूरी तरह अलग है।

वे आरक्षण व्यवस्था में किसी भी तरह के “बंटवारे” के पक्ष में नहीं हैं। उन्होंने न तो न्यायालय के फैसले का समर्थन किया और न ही सार्वजनिक रूप से विरोध किया, लेकिन यह स्पष्ट किया कि क्रीमी लेयर की अवधारणा दलित समाज के भीतर लागू नहीं होनी चाहिए।

“जैसे लोगों ने गैस सब्सिडी स्वेच्छा से छोड़ी, वैसे ही अगर कोई सक्षम है, तो वह स्वयं आगे आकर आरक्षण छोड़ सकता है, लेकिन इसे अनिवार्य नहीं बनाया जाना चाहिए।” – चिराग पासवान

राजनीतिक रणनीति: किसके साथ खड़ा है दलित वोट बैंक?

विश्लेषकों का मानना है कि यह टकराव सिर्फ वैचारिक नहीं, बल्कि राजनीतिक है।

चिराग पासवान दलितों के मजबूत और प्रभावशाली तबके – जैसे पासवान समाज – के साथ अपनी पकड़ को बनाए रखना चाहते हैं।

वहीं मांझी अत्यंत पिछड़ी दलित जातियों के नाम पर अलग आरक्षण की मांग कर, अपनी जनाधार का विस्तार करना चाहते हैं।

एनडीए के भीतर यह नेतृत्व की चुप लड़ाई अब धीरे-धीरे खुलकर सामने आने लगी है।

राजनीतिक समीकरणों पर असर

बिहार में दलित वोट करीब 19 प्रतिशत है, जिसमें पासवान, मुसहर, भुइयां, मेहतर, नट जैसी जातियों की भागीदारी है। चिराग और मांझी, दोनों की निगाहें इन्हीं मतदाताओं पर टिकी हैं।

जहां एक ओर मांझी सामाजिक न्याय के नाम पर नई लाइन खींचना चाहते हैं, वहीं चिराग समावेशी दलित नेतृत्व का चेहरा बने रहना चाहते हैं।