पटना।वर्ष 2005 से पहले बिहार में शिक्षा की स्थिति बेहद दयनीय थी। सरकारी स्कूल जर्जर हो चुके थे, बच्चों के लिए न बेंच-डेस्क थे और न ही पर्याप्त शिक्षक। राज्य में शिक्षा का बुनियादी ढांचा लगभग अस्तित्वहीन था।
1990 से 2005 के बीच शिक्षकों की नियुक्ति नाम मात्र की हुई थी। उस समय एक शिक्षक पर 65 छात्र थे, जबकि 12.5 प्रतिशत बच्चे स्कूल से पूरी तरह बाहर थे — इनमें ज्यादातर बच्चे महादलित और अल्पसंख्यक समुदायों से आते थे।
बच्चियों की हालत और भी खराब थी — पांचवीं कक्षा के बाद उनकी पढ़ाई लगभग बंद हो जाती थी। राज्य में उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज और संस्थान नगण्य थे। तकनीकी और मेडिकल शिक्षा के अवसर लगभग न के बराबर थे। उस दौर की सरकार ने शिक्षा सुधार की जगह ‘चरवाहा विद्यालय’ योजना जैसी औपचारिकताओं से ही इतिश्री मान ली थी।
2005 के बाद शिक्षा सुधार की नई शुरुआत
24 नवंबर 2005 को नई सरकार के गठन के बाद शिक्षा सुधार को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई।
सरकार ने शिक्षा बजट में हर वर्ष वृद्धि की —
जहां वर्ष 2005 में शिक्षा पर खर्च ₹4,366 करोड़ था, वहीं 2025-26 में यह बढ़कर ₹60,964.87 करोड़ पहुंच गया, जो राज्य के कुल बजट का 22 प्रतिशत है।
हर टोले तक पहुंची शिक्षा
राज्यभर में नए स्कूल भवनों का निर्माण और पुराने भवनों का जीर्णोद्धार बड़े पैमाने पर कराया गया।
2005 में जहां 53,993 विद्यालय थे, वहीं अब यह संख्या 75,812 हो गई है।
आज 97.61% टोले सरकारी विद्यालयों से आच्छादित हैं।
सभी पंचायतों में उच्च विद्यालयों की स्थापना कर 12वीं तक की पढ़ाई की व्यवस्था की गई है ताकि बेटियों को दूर न जाना पड़े।
शिक्षकों की नियुक्ति में ऐतिहासिक बढ़ोतरी
2005 के बाद से अब तक राज्य में लगभग 6 लाख शिक्षक नियुक्त किए गए हैं।
केवल वर्ष 2024 में 2,38,744 शिक्षक और 2025 में 36,947 प्रधान शिक्षक व 5,971 प्रधानाध्यापक नियुक्त किए गए।
2006 में स्थानीय निकायों से नियुक्त 3.68 लाख शिक्षकों को सक्षमता परीक्षा के माध्यम से नियमित किया जा रहा है।
अब स्कूलों में हाईटेक शिक्षा
राज्य में ‘उन्नयन बिहार योजना’ के तहत 10+2 स्कूलों में कंप्यूटर लैब, ई-लाइब्रेरी और प्रयोगशालाएं स्थापित की गई हैं।
ग्रामीण इलाकों में छात्रों की सुविधा के लिए पुस्तकालय और हाईस्पीड इंटरनेट केंद्र भी खोले गए हैं।
लड़कियों की शिक्षा में क्रांति
वर्ष 2006-07 में पोशाक योजना, और 2008 में साइकिल योजना शुरू की गई।
2010 से इसका लाभ लड़कों को भी दिया गया।
परिणामस्वरूप आज मैट्रिक और इंटर में छात्राओं की संख्या छात्रों से अधिक है।
साइकिल योजना की सराहना विश्व स्तर पर हुई और कई राज्यों ने इसे अपनाया।
हर बच्चे तक शिक्षा पहुँचाने के प्रयास
जो बच्चे पहले स्कूल नहीं जाते थे, उन्हें जोड़ने के लिए टोला सेवक और तालिमी मरकज (अब शिक्षा सेवक) की नियुक्ति की गई।
इस पहल से लगभग शत-प्रतिशत बच्चे स्कूल जाने लगे हैं।
उच्च शिक्षा और तकनीकी विकास
2005 में राज्य में केवल 10 राजकीय विश्वविद्यालय थे, आज इनकी संख्या 21 है।
साथ ही 4 केंद्रीय और 8 निजी विश्वविद्यालय भी स्थापित हुए हैं।
अब हर प्रखंड में डिग्री कॉलेज खोलने का कार्य जारी है।
राज्य में स्थापित प्रमुख राष्ट्रीय संस्थान हैं:
- IIT पटना (बिहटा)
- AIIMS पटना एवं दरभंगा (निर्माणाधीन)
- IIM बोधगया
- IIIT भागलपुर
- CNLU, CIMP, NIFT पटना आदि।
बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग (2017) के गठन के बाद उच्च शिक्षा में शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया पारदर्शी हुई।
तकनीकी और मेडिकल शिक्षा में विस्तार
अब बिहार के सभी 38 जिलों में इंजीनियरिंग कॉलेज संचालित हैं।
पॉलिटेक्निक संस्थानों की संख्या 13 से बढ़कर 46, और आईटीआई की संख्या 23 से बढ़कर 152 हो गई है।
मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी मेडिकल कॉलेजों की संख्या 12 से बढ़कर 35 होने जा रही है, जिनमें 21 नए कॉलेज निर्माणाधीन हैं।
इसके अतिरिक्त 9 निजी मेडिकल कॉलेज भी खोले जा रहे हैं।
इंजीनियरिंग कॉलेजों में सीटें 460 से बढ़कर 14,469 हो गई हैं।
साक्षरता दर में ऐतिहासिक उछाल
सरकारी प्रयासों से राज्य की साक्षरता दर अब लगभग 80% हो चुकी है।
महिलाओं की साक्षरता दर, जो 2001 में 33.57% थी, अब बढ़कर 73.91% हो गई है।
“शिक्षा अब हर बच्चे का अधिकार”
राज्य सरकार का कहना है कि पिछले 20 वर्षों में बिहार की शिक्षा व्यवस्था ने जो बदलाव देखा है, वह केवल आंकड़ों का नहीं, बल्कि राज्य की प्रतिबद्धता, प्राथमिकता और जनसहभागिता का प्रतीक है।
“हमने शिक्षा को मजाक नहीं, मिशन बनाया है।
आज बिहार में शिक्षा हर बच्चे का अधिकार बन चुकी है, और यही हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि है।”
— राज्य सरकार का वक्तव्य