पटना/नई दिल्ली – बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के मुद्दे ने राजनीतिक तूल पकड़ लिया है। अब यह मामला उच्चतम न्यायालय तक पहुँच गया है, जहां 10 जुलाई को इसकी सुनवाई निर्धारित की गई है। चुनाव आयोग द्वारा बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण के निर्देश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर यह सुनवाई होगी।
राजद सांसद मनोज झा और तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा ने दाखिल की याचिका
इस मामले में राजद सांसद प्रो. मनोज झा ने अधिवक्ता फौजिया शकील के माध्यम से याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग का 24 जून 2025 का आदेश संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 325 और 326 का उल्लंघन करता है, और इसे रद्द किया जाना चाहिए।
झा ने आरोप लगाया कि आयोग का आदेश ‘‘संस्थागत रूप से मताधिकार से वंचित करने का माध्यम’’ बन गया है और इसका इस्तेमाल मुस्लिम, दलित और गरीब प्रवासी समुदायों को लक्षित करने के लिए किया जा रहा है। साथ ही उन्होंने मांग की है कि बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव मौजूदा मतदाता सूची के आधार पर कराए जाएँ।
आयोग के फैसले पर गंभीर सवाल
तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने भी चुनाव आयोग के इस कदम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। दोनों सांसदों का तर्क है कि आयोग का निर्णय पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करता है और लोकतांत्रिक अधिकारों के उल्लंघन की आशंका पैदा करता है।
क्या है आयोग का आदेश?
निर्वाचन आयोग ने 24 जून को बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण की घोषणा की थी, जिसमें मतदाता सूची की जाँच और संशोधन की बात कही गई है। इस आदेश के बाद से राजनीतिक दलों में बेचैनी देखी जा रही है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां संवेदनशील समुदायों की आबादी अधिक है।
विधानसभा चुनाव से पहले बढ़ी हलचल
गौरतलब है कि बिहार विधानसभा चुनाव इस वर्ष के अंत तक संभावित हैं, ऐसे में मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर फेरबदल की आशंका को लेकर विपक्षी दलों ने मोर्चा खोल दिया है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद ही तय होगा कि चुनाव आयोग की योजना लागू होगी या नहीं।


