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नई दिल्ली/पटना, 10 जुलाई 2025:बिहार में चुनाव आयोग द्वारा चलाए जा रहे वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) अभियान को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई। पिछली सुनवाई में जहां अदालत ने SIR पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया था, वहीं आज की सुनवाई में न्यायालय ने चुनाव आयोग से कई गंभीर और मूलभूत सवाल पूछे।

SC की तल्ख टिप्पणी: इतनी देर से क्यों शुरू हुई यह प्रक्रिया?

जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जयमॉल बागची की पीठ ने कहा कि SIR की प्रक्रिया में मूल रूप से कोई समस्या नहीं है, लेकिन यह बहुत पहले शुरू की जानी चाहिए थी। अदालत ने कहा कि चुनाव आयोग का यह दावा कि वह 30 दिनों में यह प्रक्रिया पूरी कर लेगा, व्यवहारिक नहीं लगता

चुनाव आयोग से पूछे गए प्रमुख सवाल:

  • जब आधार कार्ड एक वैध पहचान पत्र है, तो उसे स्वीकार क्यों नहीं किया जा रहा?
  • आप विशेष पुनरीक्षण के दौरान नागरिकता की जांच की दिशा में क्यों जा रहे हैं?
  • यदि यह प्रक्रिया इतनी आवश्यक थी, तो इसे समय पर क्यों शुरू नहीं किया गया?

चुनाव आयोग की ओर से जवाब में कहा गया कि यह प्रक्रिया जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 के तहत मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए है। आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है, इसलिए उसे वैध दस्तावेज के रूप में स्वीकार नहीं किया गया।

याचिकाकर्ताओं की आपत्ति: ‘गुप्त रूप से NRC लागू हो रहा’

SIR प्रक्रिया के खिलाफ NGO ADR सहित 9 राजनीतिक दलों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। याचिकाकर्ताओं में शामिल प्रमुख नेता:

  • केसी वेणुगोपाल (कांग्रेस)
  • डी राजा (भाकपा)
  • दीपंकर भट्टाचार्य (भाकपा माले)
  • सरफराज अहमद (झामुमो)
  • अरविंद सावंत (शिवसेना UBT)
  • हरिंदर मलिक (सपा)
  • डीएमके के प्रतिनिधि नेता आदि।

इन नेताओं ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग गुप्त रूप से NRC लागू करने की कोशिश कर रहा है, जो संविधान के मूल अधिकारों का उल्लंघन है।

वरिष्ठ वकीलों की दलीलें: राशन कार्ड भी अमान्य, चुनाव आयोग के अधिकार सीमित

  • वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने तर्क दिया कि आयोग राशन कार्ड जैसे सामान्य पहचान पत्र को भी मान्यता नहीं दे रहा, जो गरीब तबके के लोगों के लिए महत्वपूर्ण दस्तावेज है।
  • कपिल सिब्बल ने सवाल उठाया कि नागरिकता की जांच का अधिकार चुनाव आयोग को किसने दिया?
  • अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि 2003 में जब ऐसा व्यापक पुनरीक्षण हुआ था, तब चुनाव से बहुत समय पूर्व यह प्रक्रिया अपनाई गई थी, जबकि इस बार चुनाव बेहद निकट हैं, जिससे लाखों नाम हटने की आशंका है।

सुप्रीम कोर्ट की दो टूक: नागरिकता भी आयोग के दायित्व में आती है?

इस पर कोर्ट ने यह प्रश्न भी उठाया कि क्या यह चुनाव आयोग का कर्तव्य नहीं है कि वह यह सुनिश्चित करे कि कोई अयोग्य नागरिक वोट न डाल सके? इस प्रश्न के जरिए न्यायालय ने इस विषय की संवैधानिक जटिलता को रेखांकित किया।


यह मामला अब सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह पूरे देश के लिए मतदाता पहचान, नागरिकता और चुनावी पारदर्शिता को लेकर बड़ी बहस का केंद्र बन गया है। सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई में आयोग को इन सवालों का विस्तृत जवाब देना होगा।