पटना। बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) ने हाल ही में आई उन मीडिया रिपोर्ट्स का खंडन किया है, जिनमें ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में बड़ी गड़बड़ी और डुप्लीकेट वोटरों की बात कही गई थी। सीईओ ने कहा कि ऐसी रिपोर्टें अटकलों और जल्दबाज़ी पर आधारित हैं और ये कानूनी ढांचे के विपरीत हैं, जिसके तहत मतदाता सूची प्रबंधन किया जाता है।
सीईओ ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स (X) पर पोस्ट कर स्पष्ट किया कि विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पूरी तरह वैधानिक प्रक्रिया है, जिसे जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के तहत संचालित किया जाता है।
ड्राफ्ट सूची अंतिम नहीं – आपत्तियों का स्वागत
सीईओ ने ज़ोर देकर कहा कि वर्तमान ड्राफ्ट लिस्ट अंतिम नहीं है।
यह केवल सार्वजनिक जांच के लिए जारी की गई है, जिसमें राजनीतिक दलों, मतदाताओं और अन्य हितधारकों से दावे और आपत्तियां आमंत्रित की जाती हैं।
“मसौदा चरण में किसी भी कथित दोहराव को ‘अंतिम त्रुटि’ या ‘अवैध समावेशन’ नहीं कहा जा सकता। दावे-आपत्तियों की अवधि और उसके बाद ईआरओ द्वारा सत्यापन के माध्यम से सभी मामलों का समाधान किया जाता है।” – बिहार सीईओ
नाम और उम्र समान होना आम बात
कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि बिहार में 67,826 डुप्लीकेट वोटर हैं। इस पर सीईओ ने कहा कि यह आंकड़ा केवल नाम और उम्र मिलान करके निकाला गया है, जबकि असलियत में ग्रामीण इलाकों में एक जैसे नाम, माता-पिता का नाम और उम्र होना बहुत आम बात है।
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी मान चुका है कि मैदानी जांच के बिना ऐसे आंकड़ों को डुप्लीकेट करार नहीं दिया जा सकता।
बूथ स्तर पर जांच के बाद ही नाम काटे जाते हैं
सीईओ ने बताया कि ड्राफ्ट लिस्ट में गड़बड़ियों की जांच की जा रही है। लोग अपनी आपत्तियां दर्ज करा सकते हैं और उस पर कार्रवाई की जाएगी।
उन्होंने कहा कि मतदाता सूची में समान प्रविष्टियों को पहचानने के लिए ईआरओनेट 2.0 सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल होता है। इसके बाद बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) और निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (ERO) द्वारा जमीनी स्तर पर सत्यापन किया जाता है, ताकि असली मतदाताओं को किसी भी तकनीकी गड़बड़ी के कारण मताधिकार से वंचित न होना पड़े।
वाल्मीकिनगर और अंजलि-अंकित मामले पर सफाई
वाल्मीकिनगर में 5,000 डुप्लीकेट वोटर होने के आरोपों को लेकर सीईओ ने कहा कि यह आंकड़ा केवल अनुमान पर आधारित है।
उन्होंने कहा कि केवल संख्या बता देने से कोई मामला प्रासंगिक नहीं हो जाता, बल्कि हर प्रविष्टि का विस्तृत ब्यौरा और रिपोर्ट आवश्यक है।
इसी तरह त्रिवेणीगंज की अंजलि कुमारी और लौकहा के अंकित कुमार के नाम से जुड़े मामले को लेकर भी सीईओ ने सफाई दी। उन्होंने कहा कि यह त्रुटियां अधिकतर लिपिकीय गलती, प्रवास (migration) से जुड़े आवेदन या घरेलू स्तर पर गलत रिपोर्टिंग के कारण सामने आती हैं।
इन दोनों मामलों में फॉर्म 8 भरे जा चुके हैं और दावे-आपत्तियों की अवधि (1 सितंबर 2025 तक) में इनका समाधान कर दिया जाएगा।
2018 के सुप्रीम कोर्ट निर्देश का हवाला
सीईओ ने यह आरोप भी खारिज किया कि मतदाता सूचियों को “लॉक” कर दिया गया है ताकि मशीन-स्तरीय विश्लेषण रोका जा सके।
उन्होंने कहा कि यह केवल डेटा सुरक्षा उपाय है। निर्वाचक पंजीकरण नियम, 1960 के नियम 22 के तहत सूचियां निर्धारित प्रारूपों में ही जारी की जाती हैं ताकि दुरुपयोग रोका जा सके।
इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट ने भी 2018 में कमलनाथ बनाम भारत निर्वाचन आयोग केस में स्पष्ट निर्देश दिए थे।
राजनीतिक दलों और मतदाताओं को अधिकार
सीईओ ने कहा कि मतदाता सूची से जुड़ी हर आपत्ति या दावा कानून के तहत मान्य है।
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 22 के तहत, निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (ERO) को नाम काटने या सुधार करने का अधिकार है।
- कोई भी मतदाता या बूथ-स्तरीय एजेंट, मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के नियम 13 के तहत आपत्ति दर्ज करा सकता है।
“यह कहना कि राज्यभर में लाखों डुप्लीकेट वोटर हैं, पूरी तरह काल्पनिक और कानूनी रूप से असमर्थनीय है। अदालतें बार-बार कह चुकी हैं कि बड़े पैमाने पर नकल के आरोपों की पुष्टि केवल सत्यापित साक्ष्यों से हो सकती है।” – बिहार सीईओ
बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने साफ कहा है कि ड्राफ्ट लिस्ट एक प्रारंभिक चरण है और इसे लेकर फैलाई जा रही अफवाहों पर ध्यान न दें।
लोगों को सलाह दी गई है कि यदि उन्हें कोई त्रुटि दिखती है तो वे समय रहते दावा/आपत्ति दर्ज करें, ताकि मतदाता सूची पूरी तरह सही और पारदर्शी बने।


