भागलपुर, 28 मई 2025:बिहार कृषि विश्वविद्यालय (BAU), सबौर ने आम की दुनिया में एक क्रांतिकारी पहल करते हुए “सीडलेस मैंगो” यानी बिना गुठली वाला आम विकसित किया है। विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. डी. आर. सिंह ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि यह नई वेरायटी आम की पारंपरिक धारणा को बदल देगी – “आम के आम और गुठली के दाम” अब सिर्फ कहावत रह जाएगी।
आम की खेती में सबौर की ऐतिहासिक भूमिका
1951 में सबौर कृषि कॉलेज ने पहली बार “महमूद बहार” और “प्रभाशंकर” जैसी आम की दो वेरायटी विकसित की थी। आज, बिहार कृषि विश्वविद्यालय के बागान में करीब 254 वेरायटी के आम मौजूद हैं। इनमें से कई वेरायटीज़ को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान भी मिल चुकी है।
जीआई टैग के लिए भेजी गईं नई वेरायटीज़
बिहार सरकार द्वारा पहले ही भागलपुरी जर्दालु आम को जीआई टैग मिल चुका है। अब बीएयू ने 12 नई आम की किस्मों को जीआई टैग हेतु भारत सरकार को प्रस्तावित किया है, जिनमें से कई उन्नत, स्वादिष्ट और व्यावसायिक रूप से उपयोगी हैं।
साल भर फल देने वाला आम और नई संभावनाएं
कुलपति डॉ. सिंह ने बताया कि विश्वविद्यालय की फ्रूट रिसर्च टीम इस समय 30 नई वेरायटी पर काम कर रही है, जिनमें साल में कई बार फल देने वाले पेड़ भी शामिल हैं। भविष्य में ऐसी किस्में भी तैयार की जा रही हैं, जो दिसंबर महीने तक फल दे सकेंगी।
सीडलेस आम “सिंधु” – गेम चेंजर वेरायटी
सबौर विश्वविद्यालय की प्रयोगशाला में तैयार की गई आम की एक वेरायटी, जिसका नाम “सिंधु” है, को सीडलेस मैंगो के रूप में जाना जा रहा है। इस आम की खासियत है कि इसमें गुठली लगभग नगण्य होती है, जिससे पल्प की मात्रा अधिक और कचरे की मात्रा बेहद कम हो जाती है। यह वेरायटी बाजार और निर्यात के लिहाज से बेहद लाभकारी मानी जा रही है।
बिहार आम उत्पादन में तीसरे स्थान पर
कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार, बिहार देश में आम उत्पादन में तीसरे स्थान पर है। यहां 9.5 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है, जो कि राष्ट्रीय औसत 8.8 टन प्रति हेक्टेयर से अधिक है।