सरकारी योजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहण के बाद होने वाले विवादों से बचने के लिए बिहार सरकार ने नया निर्देश जारी किया है। इसके बाद इस आदेश की काफी चर्चा हो रही है। तो आइए जानते हैं क्या है इसको लेकर नया निर्देश को इससे लोगों को क्या कुछ फायदा मिलेगा।
इस निर्देश के अनुसार अब जमीन की प्रकृति का निर्धारण वर्तमान स्थिति के आधार पर किया जाएगा न कि 100 साल पुराने खतियान के आधार पर। इसके अलावा अधिग्रहीत जमीन की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी भी कराई जाएगी। विभाग के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार सिंह ने सभी प्रमंडलीय आयुक्तों एवं जिलाधिकारियों को पत्र लिख कर कहा है कि नए दिशा निर्देश के आधार पर भविष्य में जमीन अधिग्रहण की कार्रवाई करें।
पत्र के मुताबिक, जमीन की प्रकृति के आधार पर मुआवजे का निर्धारण किया जाता है। आम तौर पर जमीन की प्रकृति खतियान के आधार पर तय की जाती है। खतियान सौ वर्ष से भी अधिक पुराना है। उस आधार पर जमीन का प्रकृति निर्धारण उचित नहीं होगा। निबंधन विभाग के निर्देश में हरेक तीन वर्ष की अवधि में जमीन का वर्गीकरण अद्यतन करने का प्रविधान है। इसलिए अधिग्रहण की अधिसूचना से पहले निबंधन विभाग के प्रविधान के अनुसार जमीन की प्रकृति का निर्धारण किया जाए। क्योंकि दर का निर्धारण जमीन की प्रकृति के आधार पर ही किया जाता है।
इस पत्र में कहा गया है कि अधिग्रहीत जमीन की फोटोग्राफी एवं वीडियाेग्राफी हो। उस पर तिथि भी अंकित हो, ताकि भविष्य में यह प्रमाणित हो सके कि अधिग्रहण के बाद जमीन की प्रकृति में कोई बदलाव नहीं किया गया है। फोटोग्राफी का खर्च भी जमीन अधिग्रहण करने वाला विभाग ही उठाएगा। पत्र में कहा गया है कि अधिग्रहीत जमीन का रिकार्ड दो महीने के भीतर दुरुस्त करा लिया जाए।
जमीन की दर को लेकर होने वाले विवाद को समाप्त करने का समाधान भी दिशा निर्देश में बताया गया है। निबंधन विभाग जमीन का न्यूनतम मूल्य निर्धारित करता है। यह राज्य में कई वर्षों से नहीं हुआ है। उपाय यह बताया गया है कि जिलाधिकारियों को भूमि अर्जन की कार्रवाई के लिए जमीन के दर निर्धारण का अधिकार मिला हुआ है। वे बाजार मूल्य को पुनरीक्षित और अद्यतन करने के लिए आवश्यक कदम उठाएंगे। भू अर्जन के मामले में जिलाधिकारी इस अधिकार का उपयोग करें।
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