भागलपुर, बिहार:भागलपुर स्थित ट्रिपल आईटी (IIIT) के प्रोफेसरों और इंजीनियरों की टीम एक ऐसी तकनीक पर काम कर रही है जो देशभर के लाखों बुनकरों के लिए राहत लेकर आएगी। यह टीम लो-नॉइज़ पावरलूम तकनीक विकसित कर रही है, जिससे पावरलूम मशीनों का शोर काफी हद तक कम हो जाएगा।
शोर से बुनकरों को गंभीर बीमारियाँ
असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. गौरव कुमार ने बताया कि बिहार समेत कई राज्यों में पावरलूम पर कपड़ा बुनाई होती है, लेकिन इन मशीनों से निकलने वाली तीखी आवाज बुनकरों के स्वास्थ्य के लिए बड़ी समस्या है।
लंबे समय तक तेज आवाज में काम करने से—
- कान की समस्या
- सिरदर्द
- अनिद्रा
- तनाव
जैसी बीमारियाँ तेजी से बढ़ रही हैं।

IIIT टीम बना रही है ‘साउंडलेस पावरलूम’ की तकनीक
डॉ. गौरव के अनुसार उनकी टीम ऐसी तकनीक पर काम कर रही है जिससे पावरलूम मशीनें बेहद कम आवाज में चलेंगी।
उन्होंने बताया कि इस प्रोजेक्ट को लेकर सेंट्रल सिल्क बोर्ड से भी बातचीत चल रही है और उम्मीद है कि इसे बड़े स्तर पर लागू किया जाएगा।
भागलपुर – कभी था देश का सिल्क हब
1989 से पहले भागलपुर में करीब 5 हजार बुनकर परिवार सक्रिय थे।
वक्त के साथ संख्या घटी, और आज 60–70 हजार बुनकर ही पावरलूम पर निर्भर हैं।
लेकिन उनकी सबसे बड़ी परेशानी यही है — मशीनों का निरंतर तेज शोर, जिससे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है।
बुनकर बोले—“शोर में काम करना मजबूरी, कई लोगों की सुनने की शक्ति जा रही है”
स्थानीय बुनकरों का कहना है कि वे दिन-रात मशीनों के शोर में काम करते हैं।
कई लोगों की सुनने की क्षमता कम होने लगी है।
ऐसे में साउंडलेस पावरलूम तकनीक उनके जीवन में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है।
“Weavers का Health Burden कम करना ही लक्ष्य” — डॉ. गौरव
डॉ. गौरव ने कहा—
“हम ऐसी तकनीक बना रहे हैं जिससे पावरलूम की आवाज काफी कम होगी। इससे बुनकरों को शोर से राहत मिलेगी और उनके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होगा।”


