आरा। बिहार की राजनीति में शाहाबाद क्षेत्र लंबे समय से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है। लेकिन बीते लोकसभा चुनाव में इस परंपरागत किले में विपक्ष की जीत ने भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं को चौंका दिया।
इस हार के बाद अब पार्टी के भीतर बगावती सुर सुनाई देने लगे हैं। वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह ने आरा में आयोजित राजपूत समाज के कार्यक्रम में मंच से भाजपा नेतृत्व पर सीधे सवाल उठाए। उन्होंने आरोप लगाया कि पार्टी और गठबंधन के बड़े नेताओं ने उन्हें जानबूझकर कमजोर करने की साजिश रची और राजपूत समाज की लगातार उपेक्षा की।
आरके सिंह ने अपने समर्थकों के बीच संकेत दिया कि वे अब भाजपा के साथ अपनी राजनीतिक यात्रा आगे नहीं बढ़ाना चाहते और अलग पार्टी बनाने पर भी विचार कर रहे हैं। यह बयान भाजपा के लिए चुनौती बन सकता है, क्योंकि अगर वे अलग राह अपनाते हैं, तो शाहाबाद, बक्सर और कैमूर समेत पूरे इलाके में पार्टी की पकड़ कमजोर हो सकती है।
राजपूत समाज का प्रभाव
आरके सिंह की नाराज़गी सिर्फ व्यक्तिगत नहीं है। उन्होंने सीधे-सीधे राजपूत समाज की उपेक्षा का मुद्दा उठाया है। बिहार में राजपूत समुदाय का प्रभाव चुनावी समीकरणों पर महत्वपूर्ण होता है। अगर यह नाराज़गी संगठित रूप ले लेती है, तो भाजपा और एनडीए गठबंधन के लिए विधानसभा चुनाव में सीटें बचाना मुश्किल हो सकता है। वहीं, महागठबंधन और अन्य विपक्षी दल इसे अपने पक्ष में इस्तेमाल करने से पीछे नहीं हटेंगे।
भाजपा की रणनीति पर सबकी नजरें
विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी के लिए यह संकट आसान नहीं है। आरके सिंह की नाराज़गी और बगावती तेवर ने शाहाबाद जैसे मजबूत गढ़ में भाजपा की पकड़ पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना यह होगा कि भाजपा उन्हें मनाने की कोशिश करेगी या नई रणनीति अपनाकर आगे बढ़ेगी।


