शिक्षा का महत्व क्या होता है, इसका उदाहरण बिहार के नालंदा जिले में देखने को मिला। यहां उम्रदराज महिलाएं परीक्षा देते हुए नजर आईं। किसी की पोता-पोती हैं तो किसी के बच्चे बड़े हो चुके हैं। मुख्यमंत्री अक्षर आंचल योजना के तहत बुनियादी साक्षरता महापरीक्षा शांतिपूर्वक आयोजित की गई।
106 केंद्रों पर महिला परीक्षार्थियों की भारी भागीदारी
जिले के 106 केंद्रों पर आयोजित परीक्षा में बड़ी संख्या में नवसाक्षर महिलाओं ने हिस्सा लिया। मध्य विद्यालय राणा बिगहा में विशेष उत्साह दिखा, जहां 115 महिलाओं ने परीक्षा दी। इनमें से अधिकांश पहली बार परीक्षा कक्ष में बैठीं और पहली बार कलम पकड़ने का अनुभव उनके चेहरे पर खुशी के रूप में झलक रहा था।
परिवार के समर्थन से मिला नया आत्मविश्वास
इस केंद्र पर देवरानी और जेठानी दोनों के साथ परीक्षा देने की चर्चा रही। उन्होंने बताया कि बचपन में पढ़ाई बाधित हो गई थी, लेकिन अक्षर आंचल योजना से उन्हें दोबारा सीखने का अवसर मिला।
परीक्षार्थी पिंकी देवी ने कहा,
“अब न केवल अपना नाम लिखने में सक्षम हूं, बल्कि अपने बच्चों की पढ़ाई में भी मदद कर पा रही हूं।”
साक्षरता से बढ़ा आत्मनिर्भरता का भाव
परीक्षा में शामिल अन्य महिलाओं ने बताया कि निरक्षरता दूर होने से आत्मविश्वास बढ़ा है और वे दैनिक जीवन के कई काम स्वयं कर पा रही हैं। योजना ने उन्हें आत्मनिर्भर बनने का अवसर दिया है।
अभियान का उद्देश्य: हर महिला को साक्षर बनाना
अक्षर आंचल योजना का उद्देश्य लोगों को साक्षर कर आत्मनिर्भर बनाना है। इसमें अधिकतर दलित महिलाओं को शामिल किया जा रहा है, जो कभी शिक्षा से वंचित रह गई थीं और सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाती थीं।
टोला सेवक मुन्ना मांझी ने कहा,
“सरकार की सोच है कि बिहार में एक भी निरक्षर महिला नहीं रहे। साक्षरता से ही समाज का कल्याण होगा।”


