सोनपुर (बिहार)। ठंड की दस्तक और चुनावी माहौल की थकान के बीच बिहार का प्रसिद्ध सोनपुर मेला एक बार फिर रौनक से भर उठा है। गंगा-गंडक संगम के किनारे लगने वाला यह एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला अब सैलानियों, खरीददारों और कलाकारों से गुलजार हो चुका है।
हर तरफ लोगों का हुजूम देखने को मिल रहा है। रंग-बिरंगी रोशनी, ऊँट-घोड़ों की टाप, और लोकगीतों की मिठास से पूरा मेला मैदान जीवंत हो उठा है।
पशु बाजार में दिखी पुरानी शान, घोड़ा ‘जांबाज’ बना स्टार आकर्षण
इस बार भी मेले की पहचान घोड़ा बाजार और पशु बाजार ही बना हुआ है। सैकड़ों दुधारू गाय, भैंस और ऊँटों के साथ अलग-अलग नस्लों के घोड़े खरीदारों और दर्शकों को लुभा रहे हैं।
सबसे ज़्यादा चर्चा में है सीतामढ़ी के परिहार से आया घोड़ा ‘जांबाज’, जिसने बिहार और यूपी में 40 से ज़्यादा रेस जीती हैं। 172 सेंटीमीटर ऊँचाई वाले इस घोड़े की कीमत 25 लाख रुपये रखी गई है। दर्शकों की भीड़ इसे देखने और वीडियो बनाने में जुटी है।
मीना बाजार, लकड़ी बाजार और ऊनी कपड़ों की धूम
मेले में राज्यभर से कारोबारी पहुंच चुके हैं।
मीना बाजार पूरी तरह सज चुका है — जहाँ रंग-बिरंगे कंबल, शॉल और ऊनी कपड़ों की भरमार है। लकड़ी बाजार में हस्तनिर्मित खिलौनों से लेकर सजावटी फर्नीचर तक लोगों की पहली पसंद बने हुए हैं। वहीं लोहे और पीतल के बने बर्तन, धार्मिक मूर्तियाँ और पारंपरिक खिलौने भी खूब बिक रहे हैं।
लोकसंस्कृति की महफिल: समा-चकेवा, जट-जटिन और झिझिया की झलक
सांस्कृतिक मंच पर स्थानीय कलाकारों की ओर से समा-चकेवा, जट-जटिन और पारंपरिक विवाह नृत्य की प्रस्तुति ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
इसी बीच दूर कहीं से बजती भोजपुरी लोकगीतों की धुन “जब-जब पियवा के गोरिया ध्यान धरेली…” पर लोग थिरक उठे।
तालियों और हंसी-ठिठोली से पूरा मेला परिसर गूंज उठा।
कला और आस्था का संगम
सोनपुर मेला सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि आस्था और परंपरा का संगम है।
यहां धार्मिक साधु-संतों से लेकर आधुनिक सेल्फी प्रेमी युवाओं तक, हर किसी के लिए कुछ खास है।
प्रशासन की सख्ती के बावजूद मेले की पुरानी आत्मा आज भी कायम है — जहाँ परंपरा और आधुनिकता दोनों का संगम दिखता है।


