सरकारी स्कूल के बच्चों का जज्बा: सुविधा शून्य, फिर भी मैदान में दम — स्कूल बोला, “खेल के क्या करोगे?”

भागलपुर।शिक्षा विभाग जहां एक ओर स्कूलों में खेलों को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं चला रहा है, वहीं जमीनी हकीकत अब भी निराश करने वाली है।

जिले में चल रही जिला स्तरीय विद्यालय खेल प्रतियोगिता में एक ऐसी तस्वीर सामने आई है, जिसने सरकारी स्कूलों की खेल व्यवस्था की पोल खोल दी है।

दरअसल, श्री ब्रह्मचारी आदर्श मध्य विद्यालय, घोघा के कुछ बच्चे वॉलीबॉल मुकाबले में भाग लेने पहुंचे — बिना ड्रेस, बिना जूते, और बिना किसी खेल उपकरण के।
न उनके पास स्कूल का नाम लिखा टी-शर्ट था, न स्पोर्ट्स पैंट।
जब संवाददाता ने उनसे कारण पूछा, तो बच्चों ने बताया कि विद्यालय प्रशासन की ओर से कोई सुविधा नहीं दी गई।


“प्रिंसिपल ने डांटकर भगा दिया”

बच्चों के अनुसार, जब वे जिला स्तरीय खेल के फार्म पर हस्ताक्षर करवाने अपने प्रधानाध्यापक के पास पहुंचे, तो उन्हें डांटकर भगा दिया गया।
बाद में गांव के ही एक युवक की मदद से किसी तरह फार्म पर साइन हो सका।


स्थानीय लोगों ने की मदद

घोघा के स्थानीय निवासी सुमन कुमार मंडल ने बताया कि वे इन बच्चों को खेलते देखकर प्रेरित होते हैं और समय-समय पर मदद भी करते हैं।
उन्होंने कहा, “ये बच्चे खेल में आगे बढ़ सकते हैं, लेकिन स्कूल वाले कहते हैं — खेल के क्या करोगे?


कागजों पर सीमित योजनाएं

यह दृश्य स्पष्ट करता है कि सरकार की ‘खेलो बिहार’ जैसी योजनाएं और विभागीय पहल अक्सर कागजों तक सीमित रह जाती हैं।
जहां निजी स्कूलों के बच्चे पूरी तैयारी और सुविधा के साथ मैदान में उतरते हैं, वहीं सरकारी स्कूलों के बच्चे संघर्ष, जज्बे और सपनों के सहारे अपनी पहचान बनाने की कोशिश में जुटे हैं।


प्रशासन से जवाब की प्रतीक्षा

स्थानीय लोगों ने जिला शिक्षा पदाधिकारी से इस मामले में संज्ञान लेने की अपील की है, ताकि ग्रामीण इलाकों के बच्चों को भी खेल के समान अवसर मिल सकें।
बच्चों के उत्साह ने यह साबित कर दिया है कि संसाधन नहीं, संकल्प ही सफलता की असली कुंजी है।


 

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